सोमवार, जनवरी 08, 2007

नववर्ष का स्वागत

सभी भारतीयो को नववर्ष की हार्दीक शुभकामनाएँ । भारतवर्ष जिसे लोग आजकल "इंडिया" कह कर संबोधित करते है, मे जिस धूमधाम एवं महोत्सव के रूप मे नववर्ष मनाया जाता है, उसे देखकर मुझे ऐसा आभास होता है कि वह समय अब ज्यादा दूर नही जब हम पश्चिमी देशो के बृहद संस्करण मे पूरी तरह तब्दील हो जायेगे। वैसे तो अंग्रेजीयत के प्रभाव से हमारा देश अमेरिका व ब्रिटेन जैसा ही लगता है पर कुछ तो बात थी जो हमे इन सब से अलग रखती थी। दिल मे कुछ भंम्र था पर नववर्ष की महामाया मे इस बार वह भी टूट गया।

नववर्ष के उपलक्ष्य मे कही "डिस्को थैक" तो कही पर "कैबरे" का आयोजन किया जा रहा था। पबो, रेस्टोरेंटो, होटलो ने इस अवसर पर कई रंगारंग कार्यक्रमो का आयोजन किया था। इन आयोजनो को पूर्ण करने मे किसी प्रकार की कमी नही छोडी जा रही थी। विघुत छटा से लेकर पुष्प सजावट तक की गई तैयारिया अवर्णनीय थी। मेरी मस्तिक को यह बात हिलोरे मार रही थी कि जिस शहर मे बिजली की समस्या का रोज का रोना रहता है, मे अचानक से क्या चमत्कार हो गया कि बिजली का उत्पादन एकदम से बढ गया।

मेरे सहमित्रो ने भी ऐसे ही एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। मुझे भी आयोजन मे उपस्थित होकर कार्यक्रम कि शोभा बढाने के लिये आमन्त्रित किया गया था। जब मे कार्यक्रम मे पहुचा तो हर एक मेहमान पूर्ण जोश के साथ अपने-अपने कार्यो मे लीन थे। काम के प्रति इतनी लग्न मैने आज तक नही देखी थी। मेरे एक मित्र ने विभिन्न प्रकार की मदिरा से युक्त एक जाम से मेरा स्वागत किया और नृत्य के लिये प्रेरित किया। नृत्य तो मेरे लिये माउन्ट एवरेष्ट चढने से भी कठिन कार्य के समान है अत: मैने सहमित्रो का नृत्य देखना ही उचित समझा। कुछ किशोर नाम मात्र के पहनी किशोरियो के साथ नृत्य का आन्नद लेने के दौरान चिपकने का भी प्रयास कर रहे थे। मेरी समझ मे नही आ रहा था कि बाहर इतनी कडाके की ठंड है और ये किशोरियो गर्म क्यो है। शायद बाद मे तो इतने कपडे भी बोझ लगने लगेगे इन्हे। मंच पर विभिन्न प्रकार के पाँप और फिल्मी गानो का नान-स्टाप कार्यक्रम चल रहा था। बीडी जलइले... और दिल्ली की सर्दी... जैसे गानो की झडी लगी थी।

मैने भी 1-2 घंटा कार्यक्रम का पूर्ण आन्नद लिया। पर मुझे जल्द ही अहसास हुआ कि अगर मैं इस माहौल मे और ज्यादा देर रहा तो घर पहुचना मेरे लिये दूभर हो जायेगा। अत: मैने कार्यक्रम से निकलने मे ही भलाई समझी। घर पहुचने पर कब निद्रा ने मुझे अपने आँचल मे ढका पता ही नही चला। आँख खुली तो मस्तिक मे हल्का सा दर्द सा महसूस हो रहा था और बाहर सूरज चाचू मुस्कुरा रहे थे। नववर्ष मे उनका प्रथम दिन जो था।