शुक्रवार, मार्च 30, 2007

एक कहानी

आज हम चिट्ठाकार मित्रो को एक कहानी सुनाते है। यह कहानी अच्छी हि नही बल्कि हमारे सामाजिक जीवन एवम पैशे के लिये भी महत्वपूर्ण है। तो शुरु करे । एक धोबी महाशय होते है, जिनके पास दो गधे होते है। गधा अ ओर गधा स । अ का मनना था कि वह बहुत फुर्तीला और हर कार्य को स से अच्छा कर सकता है। वह हमेशा धोबी का विश्वासपात्र और चहेता बनना चाहता था इस कारण वह ज्यादा बोझ उठाने तथा धोबी के साथ चलने की कोशिश करता। बेचारी स बहुत सीधा और साधारण विचारो का था। वह अपनी क्षमता के हिसाब से बोझ उठाता एवं औसत चाल से चलता। अ के कार्य को देखकर धोबी ने स पर अ के बराबर कार्य करने के लिये दबाव डालना शुरू कर दिया। स ने भी थोडी बहुत कोशिश की परन्तु ज्यादा सफल न हो सका। इस कारण वह हमेशा की मार खाता।
बेचारा स काफी दुखी था उसने अ से विन्रमतापूर्वक प्रार्थना कर कहा प्रिय मित्र यहा पर सिर्फ हम दो ही है इसलिये क्यो एक दूसरे से आगे निकलने के लिये दौड करे। आपको ज्ञात है कि मैं ज्यादा बोझ उठाने मे असर्मथ हूँ। हम बराबर बोझ उठाते है और औसत चाल से चले। परन्तु अ कहा मानने वाला था। अगले दिन अ ने ईष्या के कारण और दिन की अपेक्षा थोडा ज्यादा वजन उठाया और अपनी रफ्तार भी बढा दी। स ने भी थोडी बहुत कोशिश की परन्तु ज्यादा सफल न हो सका। स के कार्य को देखकर धोबी काफी खफा था। बेचारा स नित्य मार खाता रहता। अ यह देखकर काफी खुश होता। एक दिन स अत्यधिक मार से चल बसा। अ अपने आप को सर्वोच समझने लगा पर कुछ समय पश्चात ही उसका यह भ्रंम टूट गया। अब उसे स का भी कार्य करना पडता वो भी दोहरे रफ्तार से। अत्यधिक कार्य करने के कारण बेचारा बिमार पड गया। अब उससे ज्यादा नही उठता था और रफ्तार मे भी कमी आ गयी थी। स के कार्य करने की क्षमता मे गिरावट देखकर धोबी को काफी गुस्सा आता। धोबी ने स से भी मार मार कार्य कराना शुरू कर दिया। स अपने कार्य करने की क्षमता को न बढा सका और एक दिन ने धोबी उसे लात मारकर चला गया नये गधे ढूढने।
यहा पर इस कहानी का अन्त नही है पर इस से हमे व्यवसायिक और सामाजिक शिक्षा मिलती है कि हमे अपने सभी साथियो को समान समझना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति कि अपनी क्षमता होती है। कभी भी अपने स्वामी के आगे जरूरत से ज्यादा दिखावा नही करना चाहिए और न ही साथियो को दबाव मे देखकर प्रसन्न होना चाहिए। इस बात से कोई फर्क नही पडता आप अ हो या स लेकिन आप अपने स्वामी के लिये गधे हो। आखिर मैं यही कहना चाहूगा कि जरूरत से ज्यादा काम करने की कोशिश न करे बल्कि काम को चतुराई से करे। सफलता कोई नियत स्थान नही है बल्कि एक यात्रा है। आशा करता हूँ आप लोग इस कहानी से कुछ सीख जरूर लेगे।

बुधवार, मार्च 21, 2007

आज श्रीलंका के लिये प्रार्थना करे,परसों इंडिया के लिये

बरमूडा के खिलाफ 257 रनों की जीत से टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप के सुपर 8 में प्रवेश की अपनी संभावनाएं बेहतर बना ली हैं, लेकिन उसे अभी कई बाधाएं पार करनी हैं। सबसे बड़ी बाधा है आखिरी ग्रुप मैच में श्रीलंका को मात देना। भारत को हर हाल में श्रीलंका को हराना होगा। उसके बाद भी मामला नेट रन रेट पर अटक सकता है। फिलहाल श्रीलंका, भारत और बांग्लादेश, तीनों के दो-दो अंक हैं। श्रीलंका और बांग्लादेश ने एक-एक मैच खेला है जबकि भारत ने दो मैचों के बाद इतने अंक हासिल किए हैं। नेट रन रेट सबसे अच्छा श्रीलंका का है 4.860, जबकि भारत का नेट रन रेट 2.507 और बांग्लादेश का -0.139 है। नेट रन रेट किसी टीम द्वारा बनाए गए रनों को खेले गए ओवरों से भाग देकर निकली संख्या में से उस टीम द्वारा दिए गए रनों में ओवरों का भाग देकर निकली संख्या को घटा कर निकाला जाता है। भारत-बरमूडा मैच के बाद जो तस्वीर उभरी है, उसके हिसाब से आगे 4 संभावनाएं बन सकती हैं।

संभावना : 1 श्रीलंका आज बांग्लादेश को हरा दे और भारत शुक्रवार को श्रीलंका को मात दे दे । उसके बाद बांग्लादेश आखिरी मैच में बरमूडा को हरा दे।

इस लिहाज से भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश तीनों के चार-चार अंक हो जाएंगे और सुपर-8 में पहुंचने वाली टीमों का फैसला नेट रन रेट के आधार पर होगा। बांग्लादेश पर जीत के बाद श्रीलंका का नेट रन रेट और बेहतर होगा और भारत भी श्रीलंका पर जीत से अपना नेट रन रेट और सुधार लेगा। बांग्लादेश का नेट रन रेट श्रीलंका से हार के बाद गिरेगा और उसे बरमूडा के खिलाफ इतना बेहतर करना होगा कि वह भारत से आगे निकल जाए। भारत के फायदे में होगा कि श्रीलंका बांग्लादेश को अच्छे अंतर से हराए।

संभावना : 2 बांग्लादेश अपने मैचों में श्रीलंका और बरमूडा दोनों को हरा दे और भारत भी श्रीलंका को मात दे दे।

बांग्लादेश भारत को हरा सकता है तो श्रीलंका और बरमूडा को क्यों नहीं? ऐसी स्थिति में बांग्लादेश 6 अंको के साथ पहले और भारत 4 अंको के साथ सुपर-8 में पहुंच जाएंगे, जबकि श्रीलंका सिर्फ 2 अंको के साथ बाहर हो जाएगा। इस स्थिति में भारत को नुकसान यह होगा कि वह सुपर-8 में खाली हाथ जाएगा, जबकि बांग्लादेश भारत पर जीत के कारण दो अंक लेकर वहां जाएगा। ऐसे में भारत सुपर 8 में पहले से ही कमज़ोर स्थिति में होगा। संभावना नंबर 1 में भारत श्रीलंका को हराने के कारण 2 अतरिक्त अंक लेकर जाएगा।

संभावना : 3 भारत और बांग्लादेश दोनों श्रीलंका से हार जाएं और बांग्लादेश ने बरमूडा को हरा देऐसी स्थिति में श्रीलंका 6 अंको के साथ पहले और बांग्लादेश 4 अंको के साथ सुपर-8 में पहुंच जाएंगे, जबकि भारत सिर्फ 2 अंको के साथ बाहर हो जाएगा। (भगवान से प्रार्थना करे कि ये बिल्कुल न हो)

संभावना : 4 अगर भारत और बांग्लादेश दोनों श्रीलंका से हार जाएं लेकिन बरमूडा बांग्लादेश को हरा दे
इसको संभावना के बजाय असंभावना कहना ज़्यादा सही होगा । भारत को हराने के बाद से बांग्लादेश के खिलाड़ियों का मनोबल काफी बढा है। बरमूडा बांग्लादेश को हरा दे, यह तभी हो सकता है यदि मैच फिक्स हो या वे मैच खेल ही न पाएं। क्रिकेट अनिश्चितताओ का खेल है इसमे कुछ भी हो सकता है लेकिन अगर ऐसा हो तो भारत श्रीलंका से हारने के बाद भी सुपर 8 में जा सकता है क्योकि तब श्रीलंका के 6 अंक हो जाएंगे और भारत, बरमूडा और बांग्लादेश, तीनों के 2-2 अंक होंगे। लेकिन बांग्लादेशी टीम के फॉर्म को देखते हुए यह ख्याली पुलाव ही लगता है कि वह बरमूडा से हार जाएगी।
देखते है समय के गर्भ मे क्या छुपा है। मेरी शुभकामनाये टीम इंडिया के साथ है आशा है आप सब कि भी होगी।
(स्रोत: विभिन्न समाचार-पत्र)

सोमवार, मार्च 19, 2007

शुरू में ही भारत की शर्मनाक हार

किसी भी खेल के हार और जीत दो जरूरी पहलू होते है जैसे किसी सिक्के का एक तरफ हैड तो दूसरी तरफ टैंल। विश्वकप के एक बहुत ही उलटफेर भरे मैच में बांग्लादेश की टीम ने भारत को 5 विकेट से हरा दिया। बांग्लादेश की टीम ने भारत को खेल के हर क्षेत्र में पछाड़ते यह ऐतिहासिक जीत दर्ज की। चूंकि यह मैमने द्वारा शेर का शिकार करना जैसी घटना है इसलिए यह क्रिकेट प्रेमियों को कुपित करने के लिये काफी है और जो स्वाभाविक भी है। इस घुटनाटेक पराजय के बाद भारतीय टीम की सफलता के लिए लिखे और गाए-बजाए गए सारे तराने बेसुरे हो गये है, सारे हवन-कीर्तन विफल हो गये। क्या कारण है बांग्लादेश के हाथों भारतीय टीम की ये दुर्गति हुई? अपने आप पर जरूरत से ज्यादा भरोसा, प्रतिद्वंद्वी टीम को नौसिखिया और कमजोर समझना या खेल से अधिक विज्ञापन बाजी में ध्यान लगाना है? मेरे विचार से प्रमुख कारण देश के खिलाड़ीयो का खेल के बजाए धन कमाने पर अधिक ध्यान एवं प्रसिद्धि बटोरने के फेर में पड़ जाना है। इन स्थितियों में मैदान पर उनका प्रदर्शन प्रभावित होना तय है।


भारतीय टीम ने खेल के प्रत्येक क्षेत्र में जैसा लचर प्रदर्शन किया और साथ ही जैसे हाव-भाव दिखाए उससे उसके पाकिस्तान की राह पर चल निकलने का खतरा पैदा हो गया है। ऐसा लगता है कि टीम इंडिया ने अपना सारा दमखम अभ्यास मैचों में ही दिखा दिया। नि:संदेह ऐसे रद्दी खेल के बल पर कोई टीम विश्व विजेता बनने का ख्वाब देखने की भी हकदार नहीं। पहले ही मैच में बुरी तरह पिटने के बाद यदि टीम इंडिया के साथ ही उसके कोच ग्रेग चैपल पर गुस्सा उतारा जा रहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।हम पहले भी देख चुके है कि भारतीय टीम अतीत में भी बुरी तरह पिटने के बाद बेहतर खेल दिखा चुकी है इसलिए यह अपेक्षा बनाए रखी जानी चाहिए कि वह आगे अपने हालिया प्रदर्शन को दोबारा नही दोहरायेगी, लेकिन इस एक पराजय ने यह तो बता ही दिया कि हमारी टीम में बुनियादी स्तर पर कोई बड़ी खामी है।


नि:संदेह यह खामी टीम इंडिया के प्रबंधन तंत्र में भी है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी टीम हो जो इतना प्रसिद्धि, पैसा और प्यार पाने के बावजूद अपने खेल के स्तर को ऊंचा उठाने में नाकाम साबित हुई हो। यह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का प्राथमिक दायित्व बनना चाहिए था कि हमारी टीम इस खेल के हर स्तर पर श्रेष्ठता कायम करे, लेकिन ऐसा लगता है कि उसकी प्राथमिकताओं में केवल धन जुटाना शामिल है। आखिर क्या कारण है कि भारतीय टीम की रैंकिंग ऊपर उठने का नाम नहीं ले रही है? क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि विश्व कप जीतने का दावा करने वाली टीम इंडिया के लिए अब यह दुआ करनी पड़ रही है कि वह बरमूडा से तो अच्छी तरह जीत जाए? यह दुआ करनी पड़ रही है तो इसीलिए कि हमारी टीम ने जीत के लिए तनिक भी जज्बा नहीं दिखाया। दरअसल उसने क्रिकेट प्रेमियों के भरोसे को ही नहीं तोड़ा, बल्कि उन्हें शर्मिदा भी किया है।

राँची में नाराज क्रिकेटप्रेमियों ने धोनी के नए मकान के निर्माण स्थल पर धावा बोलकर उनके खिलाफ नारेबाजी की और एक निर्माणाधीन चारदीवारी को क्षतिग्रस्त कर दिया,कानपुर में सहवाग और विकेटकीपर धोनी के पुतले फूँके गए, जयपुर और वाराणसी में भी टीम इंडिया के खिलाड़ियों के पुतले जलाए गए। कोलकाता में लोगों ने कोच ग्रेग चैपल और कप्तान राहुल द्रविड़ के खिलाफ प्रदर्शन किया। जालंधर के कम्पनी बाग में खिलाड़ियों के पोस्टर जलाए गए।

लेकिन क्रिकेट प्रेमियों को यह ध्यान रखना होगा कि उनका रोष अराजकता में तब्दील न होने पाए। उन्हें अपनी नाराजगी और निराशा जाहिर करने का पूरा अधिकार है, लेकिन संयमित और मर्यादित ढंग से। नि:संदेह क्रिकेट हम भारतीयों के खून में रच-बस सा गया है, लेकिन है तो आखिर वह एक खेल ही। एक मैच में मिली पराजय के बाद सब कुछ गंवा देने का भाव ठीक नहीं।

गुरुवार, मार्च 15, 2007

ट्रैफिक की समस्या

दिल्ली ही नहीं भारत के दूसरे महानगरों में भी ट्रैफिक की समस्या दिनो-दिन बढती जा रही है। ट्रैफिक की समस्या भी उन बड़ी समस्याओं की सूची में आती है जिनकी तरफ हमने आज़ादी के बाद ध्यान नहीं दिया है। आज शहरों में वाहनों की बढ़ती भीड़ प्रशासन के लिए सिरदर्द बनी हुई है। तकनीकी कुशलता और प्रबंधन क्षमता में अव्वल अमेरिका में भी ट्रैफिक जाम एक समस्या है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत के महानगरों में आबादी का बोझ बढ़ा है। उनमें व्यापारिक गतिविधियां लगातार तेज होती जा रही हैं। उनमें लोगों का जीवन स्तर बढ़ रहा है। दूसरी ओर तकनीकी परिष्कार के साथ नए और बड़े वाहन भी सामने आ रहे हैं। ट्रैफिक की समस्या के समाधान में लोगों का जो सहयोग मिलना चाहिए वह नहीं मिलता। समस्याओं को टालना, उनका सामना न करना या अस्थाई समाधान खोजना शायद हमारी आदत बन गई है। शहरों का अंधाधुंध और बिना समझे-बूझे विस्तार, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अभाव, सड़कों और पुलों का अभाव, यातायात के नियमों का पालन न करना आदि कारण हैं जिन पर समग्र रूप से विचार किया जाना चाहिए था। प्रशासन का रवैया टालने वाला है। ज़ाहिर है समस्या के प्रति गंभीर रुझान का अभाव और व्यक्तिगत ढंग से समाधान खोजने की प्रवृति से समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।

कहीं भी आने-जाने में लाखों, करोड़ों लोगों के अनगिनत घंटे बर्बाद होते हैं,गाड़ियों में खरबों रुपए का तेल बेवजह फुंकता है, पता नहीं कितना धुआँ परिवेश को गंदा कर देता है? हाल में प्रकाशित अर्बन मोबिलिटी रिपोर्ट- 2005 में इस बात का खुलासा किया गया है कि ट्रैफिक जाम के कारण लोगों का समय तो नष्ट हो ही रहा है, तेल की भी बर्बादी बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में वर्ष 2003 में ट्रैफिक जाम की वजह से लोगों के 3.7 अरब घंटे और 8.7 अरब लीटर तेल की बर्बादी हुई। यह वर्ष 2002 के मुकाबले क्रमश: 7.9 करोड़ घंटे और 26 करोड़ लीटर ज्यादा है। जाहिर है अमेरिका के लिए यह संकट निरंतर बढ़ा है। वहां 1982 से विभिन्न वाहनों द्वारा तय की गई दूरी में 74 फीसदी का इजाफा हुआ है , जबकि सड़कों के दायरे में 6 फीसदी की वृद्धि हुई है। परिवहन अधिकारियों का मानना है कि अमेरिका की ट्रैफिक समस्या को दूर करने में छह वर्ष का वक्त लग सकता है और इस पर करीब 400 अरब डॉलर के खर्च का अनुमान है।

लंदन में ऐसा नियम है कि प्रमुख बाज़ारों जैसे आक्सफोर्ड स्ट्रीट आदि क्षेत्रों में केवल पब्लिक ट्रांसपोर्ट द्वारा -ही जा सकता है। मतलब यह कि प्राइवेट गाड़ियाँ दूर किसी पार्किंग में खड़ी करनी पड़ती हैं। एशिया के अनेक देशों ने भी इस समस्या से जूझने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं। थाईलैंड और मलेशिया जैसे देशों में अर्बन रेलवे का विस्तार किया जा रहा है। सिंगापुर में सड़क पर बढ़ती भीड़ को देखकर पैसेंजर कारों पर टोल टैक्स बढ़ा दिया गया है। तीन या उससे कम लोगों को लेकर आने वाली पैसेंजर कारों के शहर और खासकर व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश करने पर शुल्क लगा हुआ है , जिसे एरिया लाइसेंसिंग कहते हैं। मलेशिया में भी ऐसी ही व्यवस्था लागू है। इसी संकट को भांपकर जापान ने लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम शुरू किया जिसके तहत हलकी छोटी ट्रामें चलाई जा रही हैं जो पटरी और सड़क पर समान रूप से चलती हैं।

दिल्ली में इसका उल्टा है। कनाट प्लेस में बसें नहीं आ सकतीं, सिर्फ़ प्राइवेट गाड़ियाँ, कारें या टैक्सियाँ आ सकती है। बसें कनाट प्लेस से कुछ दूर आकर रूक जाती है। यानी बस में चलने वाले को कनाट प्लेस तक आने के लिए पैदल चलना पड़ता है लेकिन कार सीधे दुकान के सामने आ सकती है। पब्लिक ट्राँसपोर्ट पर प्राइवेट ट्राँसपोर्ट को प्राथमिकता देना शायदी हमारी सामंती समझ का हिस्सा है। हमारे देश में सामंत तो नहीं हैं लेकिन सामंती संस्कार बहुत प्रबल हैं। एक और बड़ी समस्या यह है कि हमारे देश में जिन लोगों के पास कारें हैं वे अपनी कारों से घर के दरवाज़े के सामने ही उतरना चाहते हैं। दुकानदार भी यह चाहते हैं कि कार से ही दुकान के सामने उतरें। उन्हें दो कदम भी पैदल न चलना पड़े। इस मानसिकता ने सड़क के किनारे वाली जगह को पार्किंग बना दिया है जो मुफ्त में मिल जाती है। दुकानदारो द्वारा अपनी दुकानो के आगे तक करीब 5 से 6 फुट की जगह पर समान रखना, कही पर भी ट्रैक्टर या ट्राली का खडा कर देना जैसे कारक भी ट्रैफिक की समस्या को जटील बना देते है। लेकिन इसकी वजह से कितनी अव्यवस्था होती है। लोगों को कितनी परेशानी होती है, यह सब जानते हैं।

शहरों और खासतौर पर बड़े शहरों के मास्टर प्लान के साथ मनमाने खिलवाड़ ने भी ट्रैफिक की समस्या को विकराल बना दिया है। जहाँ एक कोठी हुआ करती थी और 10-12 लोग रहा करते थे वहाँ अब ऊँची-ऊँची इमारते बन गई है जिनमें सैंकड़ों लोग रहते हैं। बडे बडे शोपिग सैटर, माल खुल गये है। शहर की व्यस्तम सडको पर हर 10 मिनट के बाद लगता जाम प्रत्येक आने जाने वाले के लिए परेशानी का कारण बनता है। 40-50 किलोमीटर प्रति घंटा की चाल से 1 किलोमीटर का सफर तय करने मे मुश्किल से डेढ मिनट लगता है पर यहा तो आधा किलोमीटर का सफर तय करने मे ही 10 मिनट लग जाते है। सड़के रबड़ की तो बनी है नहीं जिन्हे चाहे जितना खीच कर बडा कर लो । ज़ाहिर है कि उनकी अपनी एक क्षमता है जो समाप्त हो सकती है।

यह भी एक विडंबना है कि पिछले दो दशकों में पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण क्षेत्र के लिए राशि बढ़ रही है लेकिन ग्रामीण इलाकों से शहरों-महानगरों की ओर लोगों का पलायन रुकने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में ट्रैफिक की समस्या अब भयावह रूप लेती जा रही है। पर इस संकट को सुलझाने की कोई कारगर योजना नजर नहीं आ रही। अगर आपके पास कोई सामाधान है तो जरूर बताये

शुक्रवार, मार्च 09, 2007

फिल्म समीक्षा - निशब्द

अधेड उम्र के पुरूष या महिला का अपनी बेटा/बेटी के उम्र के लडके/लडकी के साथ प्यार, आकषर्ण भारतीय दर्शको के लिये कोई नया विषय नही है। निशब्द से पहले भी कई फिल्मे इस विषय पर बन चुकी है जैसे दूसरा आदमी, लम्हे, लीला, तुम, छोटी सी लव स्टोरी और जांर्गस पार्क। इन फिल्मो मे इस तरह के रिश्ते की पेचदीगियो और उनके भावो को परदे पर दर्शाने का प्रयास किया गया था। पर क्या भारतीय दर्शक इस विषय पर बनी फिल्म देखने के लिये मानसिक रूप से तैयार है? पर मानना पडेगा रामगोपाल वर्मा को जिन्होने इस संवेदनशील को चुना और बडी शिद्रदत के साथ पर्दे पर उतारा भी है। इस फिल्म के जरिये उन्होने साबित कर दिया है कि वो संवेदनशील विषयो पर भावुक फिल्मे बना सकते है। बहुत से लोग इसे एडरिन लापन की "लोलिता" की कांपी बताते है पर ऐसा कुछ नही है, केवल समानता है तो सिर्फ विषय कि और कुछ नही।

फिल्म कि शुरूआत होती है विजय (अमिताभ बच्चन, ज्यादातर फिल्मो मे उनका यही नाम होता है) से, जो पेशे से एक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर है। अपनी पत्नी रेवती और बेटी रितु (श्रद्धा आर्य) के साथ एक हिल स्टेशन मे रहते है। एक बार की सहेली जिया (जिया खान) उसके साथ छुटटीया बिताने उसके घर आती है। तलाकशुदा माँ बाप की बेटी जिया भावनात्मक रूप से बेहद कमजोर है। विजय से पहली ही मुलाकात मे जिया उसकी तरफ आर्कषित हो जाती है। इसे पहली नजर का प्यार कहो या विपरिताकर्षण । दोनो एक दूसरे कि तरफ खीचे चले जाते है। विजय को अपने प्यार को व्यक्त करने के लिये शब्द ही नही मिलते। वह अपनी भावना को करने मे खुद को दोषी महसूस करता है। इस कारण वह आत्महत्या के बारे मे भी सोचता है। वह असंमनजस मे है। एक तरफ उसकी भावनाए है, तो दूसरी तरफ जिम्मेदारी। जैसा कि होता ही है प्यार छुपाये नही छुपता। रितु को अपने पिता और जिया के प्यार के बारे मे पता लग जाता है। तब आता है सब के जींवन मे सुनामी जैसा कहर। विजय को अपने दंद्ध एव जिम्मेदारी की के बीच फैसला लेना पडता है और जिम्मेदारी की जीत होती है । विजय, जिया को अपने घर से निकल जाने का आदेश देते है पर इस से पहले अपनी पत्नी और बेटी के सामने जिया से प्यार को स्वीकारते है। जिया चली जाती है और विजय अपनी यादो मे जिया को बसाए हुए है। इसी के साथ फिल्म खत्म हो जाती है ।

फिल्म ठीक-ठाक बन पडी है पर फिल्म की गति बहुत धीमी है। इन्टरवल के बाद तो और भी 2-3 पंचर हो जाते है। अमित राय की सिनेमेट्रोग्राफी काफी बेहतरीन है, मन्नार के चाय के बागान एव हरी भरी वादीयो को अच्छी तरीके से फिल्माया गया है। फिल्म में संगीत दिया है विशाल भारद्वाज और अमर मोहिले ने और बोल लिखे हैं फरहद, साजिद ने। इसमें बिग बी और जिया खान ने खुद ही गाने गाए है। पाश्र्वसंगीत भी अच्छा है। थोडी मेलोडी के बीच मे स्वर ध्वनिया अधिक कारगर लगती है। लगता है लेखक महाशय कहानी के बीच मे कही उलझ गये थे जिस कारण फिल्म के मध्य भाग मे ठहराव सा प्रतीत होता है। संवाद द्रश्यो को अच्छी तरह से न फिल्मा पाना भी नकारात्मक असर डालता है। अभिनय के मामले मे अमिताभ बच्चन तो कमाल करते ही है। आँखो से अपना सारा दर्द ब्यान करने मे सफल हुए है। जिया ने भी अच्छा अभिनय किया है। रेवती, श्रद्धा आर्य, नासीर ने अपने कार्य के साथ न्याय किया है। सब कुछ मिलाकर फिल्म को देखा जा सकता है अगर आप इस विषय के अनकहे दर्द को झेलना चाहते है तो। और हाँ फिल्म को देखने के बाद अपनी प्रतिक्रिया लिखना मत भुलना।

बुधवार, मार्च 07, 2007

विश्व कप क्रिकेट का कार्यक्रम एवं स्वरूप

वेस्टइंडीज़ में हो रहे क्रिकेट महासंग्राम 2007 में 16 टीमें हिस्सा ले रही है। इन 16 टीमों को चार-चार के चार ग्रुप में बाँटा गया है। इस बार के विश्व कप में ग्रुप का निर्धारण करते समय पिछले साल विश्व कप के कार्यक्रमों की घोषणा के समय की आईसीसी रैंकिंग के आधार पर टीमों को वरीयता दी गई है।

ग्रुप ए

ऑस्ट्रेलिया (1)
दक्षिण अफ़्रीका (5)
स्कॉटलैंड (12)
हौलेन्ड (16)

ग्रुप बी

श्रीलंका (2)
भारत (8)
बांग्लादेश (11)
बरमूडा (15)

ग्रुप सी

न्यूज़ीलैंड (3)
इंग्लैंड (7)
कीनिया (10)
कनाडा (14)

ग्रुप डी

पाकिस्तान (4)
वेस्टइंडीज़ (6)
ज़िम्बाब्वे (9)
आयरलैंड (13)

(कोष्टक मे दी गई टीम रैकिक अप्रैल 2005 मे आईसीसी द्रारा जारी)


11 मार्च: उदघाटन समारोह

ग्रुप मैच

13 मार्च: ग्रुप डी- वेस्टइंडीज़ और पाकिस्तान (जमैका)
14 मार्च: ग्रुप ए- ऑस्ट्रेलिया और स्कॉटलैंड ( सेंट किट्स)

14 मार्च: ग्रुप सी- कीनिया और कनाडा (सेंट लूसिया)
15 मार्च: ग्रुप बी- श्रीलंका और बरमूडा (त्रिनिडाड)
15 मार्च: ग्रुप डी- ज़िम्बाब्वे और आयरलैंड (जमैका)
16 मार्च: ग्रुप ए- दक्षिण अफ़्रीका और हौलेन्ड (सेंट किट्स)
16 मार्च: ग्रुप सी- इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड (सेंट लूसिया)
17 मार्च: ग्रुप बी- भारत बांग्लादेश (त्रिनिडाड)
17 मार्च: ग्रुप डी- पाकिस्तान और आयरलैंड (जमैका)
18 मार्च: ग्रुप ए- ऑस्ट्रेलिया और हौलेन्ड (सेंट किट्स)
18 मार्च: ग्रुप सी- इंग्लैंड और कनाडा (सेंट लूसिया)
19 मार्च: ग्रुप बी- भारत और बरमूडा (त्रिनिडाड)
19 मार्च: ग्रुप डी- वेस्टइंडीज़ और ज़िम्बाब्वे (जमैका)

20 मार्च: ग्रुप ए- दक्षिण अफ़्रीका और स्कॉटलैंड (सेंट किट्स)
20 मार्च: ग्रुप सी- न्यूज़ीलैंड और कीनिया (सेंट लूसिया)
21 मार्च: ग्रुप बी- श्रीलंका और बांग्लादेश (त्रिनिडाड)
21 मार्च: ग्रुप डी- ज़िम्बाब्वे और पाकिस्तान (जमैका)
22 मार्च: ग्रुप ए- स्कॉटलैंड और हौलेन्ड (सेंट किट्स)
22 मार्च: ग्रुप सी- न्यूज़ीलैंड और कनाडा (सेंट लूसिया)
23 मार्च: ग्रुप बी- भारत और श्रीलंका (त्रिनिडाड)
23 मार्च: ग्रुप डी- वेस्टइंडीज़ और आयरलैंड (जमैका)
24 मार्च: ग्रुप ए- ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीका (सेंट किट्स)
24 मार्च: ग्रुप सी- इंग्लैंड और कीनिया (सेंट लूसिया)
25 मार्च: ग्रुप बी- बरमूडा और बांग्लादेश (त्रिनिडाड)


(ग्रुप ए बी और सी के मैच भारतीय समयानुसार साय 7:00 बजे तथा ग्रुप डी के मैच भारतीय समयानुसार साय 8:00 बजे प्रारम्भ होगे।)

सुपर-8

27 मार्च: एंटिगा- डी-2 और ए-1
28 मार्च: गयाना- ए-2 और बी-1
29 मार्च: एंटिगा- डी-2 और सी-1
30 मार्च: गयाना- डी-1 और सी-2
31 मार्च: एंटिगा- ए-1 और बी-2
01 अप्रैल: गयाना- डी-2 और बी-1
02 अप्रैल: एंटिगा- बी-2 और सी-1
03 अप्रैल: गयाना- डी-1 और ए-2
04 अप्रैल: एंटिगा- सी-2 और बी-1
07 अप्रैल: गयाना- बी-2 और ए-2
08 अप्रैल: एंटिगा- ए-1 और सी-2
09 अप्रैल: गयाना- डी-1 और सी-1
10 अप्रैल: ग्रेनाडा- डी-2 और ए-2
11 अप्रैल: बारबाडोस- सी-2 और बी-2
12 अप्रैल: ग्रेनाडा- बी-1 और सी-1
13 अप्रैल: बारबाडोस- ए-1 और डी-1
14 अप्रैल: ग्रेनाडा- ए-2 और सी-1
15 अप्रैल: बारबाडोस- बी-2 और डी-1
16 अप्रैल: ग्रेनाडा- ए-1 और बी-1
17 अप्रैल: बारबाडोस- ए-2 और सी-2
18 अप्रैल: ग्रेनाडा- डी-1 और बी-1
19 अप्रैल: बारबाडोस- डी-2 और बी-2
20 अप्रैल: ग्रेनाडा- बी-1 और सी-1
21 अप्रैल: बारबाडोस- डी-2 और सी-2

(अंकों के आधार पर चार शीर्ष टीमों को सेमी फ़ाइनल में जगह मिलेगी, सभी मैच भारतीय समयानुसार साय 8:00 बजे प्रारम्भ होगे।)

सेमी फ़ाइनल
24 अप्रैल: जमैका- दूसरी टीम और तीसरी टीम (भारतीय समयानुसार साय 8:15 बजे प्रारम्भ)
25 अप्रैल: सेंट लूसिया- पहली टीम और चौथी टीम (भारतीय समयानुसार साय 7:15 बजे प्रारम्भ)

फ़ाइनल
28 अप्रैल: बारबाडोस (पहले सेमी फ़ाइनल का विजेता और दूसरे सेमी फ़ाइनल का विजेता, भारतीय समयानुसार साय 7:15 बजे प्रारम्भ)

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ग्रुप मैचों में जीत के लिए टीम को दो अंक, टाई और मैच रद्द होने पर एक अंक मिलेगे । ग्रुप मैचों के बाद हर ग्रुप की दो शीर्ष टीमों को सुपर-8 में जगह मिलेगी । अगर दो टीमों को बराबर अंक मिले, तो टाई ब्रेकर के आधार पर फ़ैसला होगा। टाई ब्रेकर में टीमों के ज़्यादा मैच जीतने के औसत, रन को भी आधार बनाया जा सकता है।

ग्रुप मैचों में जीत के लिए टीम को दो अंक, टाई और मैच रद्द होने पर एक अंक मिलेगे । ग्रुप मैचों के बाद हर ग्रुप की दो शीर्ष टीमों को सुपर-8 में जगह मिलेगी । अगर दो टीमों को बराबर अंक मिले, तो टाई ब्रेकर के आधार पर फ़ैसला होगा। टाई ब्रेकर में शीर्ष टीम के निर्धारण के लिये टीम के ज़्यादा मैच जीतने के औसत, रन गति को भी आधार बनाया जा सकता है ।

सुपर-8 में कुल 24 मैच खेले जाएँगे । सुपर-8 में पहुँचने वाली टीम ग्रुप मैच में जिस टीम से पहले लड चुकी है, उसे छोड़कर बाक़ी सभी टीमों से मैच खेलेगी । अर्थात सुपर-8 मे प्रत्येक टीम को 6 अन्य टीमो से लडना होगा । सुपर-8 में पहुँचने वाली टीमों को ग्रुप मैचों में जितने अंक मिले हैं, वो सुपर-8 में भी उनके खाते में जुड़ जाएँगे । सुपर-8 की चार शीर्ष टीमें सेमी फ़ाइनल में पहुँचेंगी। सुपर-8 में वरीयता ग्रुप मैचों की तरह ही दी गई है । सुपर-8 में पहुँचने वाली टीमों को ग्रुप मैचों में जितने अंक मिले हैं, वो सुपर-8 में भी उनके खाते में जुड़ जाएँगे। सुपर-8 की चार शीर्ष टीमें सेमी फ़ाइनल में पहुँचेंगी। इन चार शीर्ष टीमों मे से दो टीमे फाइनल मे पहुचेगी।






शनिवार, मार्च 03, 2007

नोटपेड का डायरी कि तरह उपयोग

इन्टरनेट के मायाजाल मे उल-जलुल हरकते करते करते मुझे एक नये ब्रहम ज्ञान की प्राप्ति हुई। नोटपेड का डायरी कि तरह उपयोग करने का तरीका । मुझे काफी अच्छा लगा। कौन इस के जन्मदाता है ये तो पता नही चला परन्तु मैने सोचा शायद हमारे कुछ मित्रो को इस के बारे मे जानकारी न हो। अत: अपने ब्लाग मे इसका उल्लेख करना उचित समझा। तो महाशय तैयार हो जाये ब्रहम ज्ञान का रसपान करने के लिये।

  1. ये तो आप लोगो को पता ही होगा कि नोटपेड को कैसे खोलते है। नही पता तो घबराने की कोई आवश्यकता नही है, हम बताते है। स्ट्रार्ट पर किल्लिक करे, प्रोग्राम मे जाये, असशिरीज मे किल्लिक करे। नोटपेड दिखाई दिया ना तो बिना रूके किल्लिक कर दे।हा तो खुल गया आपका का कोरा कागज ।
  2. अब लिखे .LOG (लिखने के लिये बडे अक्षरो का प्रयोग करे)लिखना शुरू कि लाइन मे ही है। एन्टर दबा दे।
  3. अब वक्त है इस पोथी को सहजने का अर्थात सेव करने का। सेव कर दे अपनी मन मुताबिक स्थान पर मन मुताबिक नाम से जैसे कि डांयरी, मेरी डांयरी इत्यादि ।
  4. अब अपनी सेव की पोथी को खोले। देखा महाशय चम्तकार आपकी पोथी मे आपके कम्प्युटर की घडी के मुताबिक समय और तिथी आ गई है। लिखिये अपनी गाथा और सेव कर दे। जब आप अगली बार पोथी खोलेगे तो एक लाइन छोड कर नयी समय और तिथी आ जायेगी।

तो देर किस बात की है आजमाइये इसे।