मंगलवार, अगस्त 31, 2010

काँच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं…उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची… उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ… आवाज आई…फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे… फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई…प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो… टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी…ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है…यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा… मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ.. टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है… पहले तय करो कि क्या जरूरी है… बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया… इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये । अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो..मैंने अभी-अभी यही किया है.. :)

अकेला

इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ.
सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.

जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ.

दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा.
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ.

सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको.
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ.

आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे.
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हूँ.

शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

अप्रेजल की दुखद कहानी

हर बार नए फैनेंशियल इयर की शुरुआत में अक्सर ऑफिसों में अप्रेजल की बात चलने लगती है। और इसी अप्रेजल की बात के साथ शुरू हो जाता है अप्रेजल का खेल । अप्रेजल से संम्बधित विपीन खनडूरी कि ये कविता बहुत ही अच्छी लगी जो मुझे मेल द्रारा प्राप्त हुई । तो सोचा क्यो ना आप लोगो से भी इसे बाँटा जाये । कुछ इसी तरह का वाक्या मेरे साथ भी घटित हो चुका है फरक इतना है कि मेरा 2 रुपये कि जगह पर सिर्फ 500 रुपये कि बढोतरी हुई थी और मेने भी खनडूरी कि तरह कि करना उचित समझा इस कविता ने ने 2 साल पहले का वाक्या याद दिला दिया।

अप्रेजल के नाम पर एक लम्बी आह भरते है,
चलीये अब हम इस दुखद कहानी कि शुरुआत करते है,

हमेशा कि तरह 10 बजे ठुमकते हुए आफिस आया,
11 बजे नाश्ता किया और बारह बजे तक मेल पढ पाया,

हमेशा कि तरह आज भी मुझे आलस आ रहा था,
और मेरा PM मुझे तिरछी निगाहो से देख देख गुस्सा रहा था,

मै बडे कन्सनट्रेसन के साथ एक मेल पढ रहा था,
तभी देखा मेरे PM के नाम का नया मेल कोने मे से झाक रहा था,

फिर कोई ट्रेनिग करनी होगी, ये क्या बकवास है,
क्या जबाब दू कि, मेरे मेल बाक्स का उपवास है,

मेने आखे बंद कि और 10 बार ॐ ॐ बोला
और प्रणाम करते हुये मैने वो मेल खोला,

PM के इस मेल मैं एक अजीब सा सुकून और भोलापन है
लिखा है भाइयों अप्रेजल पत्र आ गएअब तो आमने सामने कि बात है।

मॅन मैं ऐसे बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे
ऊपर से कुछ लोग मेरे डि अप्रेजल की गन्दी अफवाह उड़ा रहे थे

PM को पत्र लाते देख हर कोई उसे देखता जाता है
जैसे मलिका के किसी नए गाने को देखा जाता है

आखिर वो वक़्त आयाPM ने एक एक करके सब को बुलाया
जो भी अंदर जाता हँसता हुआ जाता
जो बहार आतामुरझाया हुआ आता

बहार आ कर इंसान संभल भी नहीं पता है
की कितना हुआ कितना मीला हर कोई उसपे टूट जाता है

किसी एक को अप्रेजल मैं 2000 रुपये मिले थेमैं उसकी हंसी उड़ा रहा था
तभी मैंने देखा मेरा PM इशारे से मुझे अंदर बुला रहा था

मैं आत्मविश्वास से उठा और आगे कदम बढाया
तभी मेरी बेलट का बकल टूट के नीकल आया

मेरी हालत तो अभी से ही बुरी हो गयी
साला इज्ज़त उतरना तो यही से शुरू हो गयी

मैं अंदर पहुंचा और PM ने मुझे बिठाया
उसने पत्र पढा और वो हंसी रोक न पाया

वोह इतना हंसा की उसके आंसू आ गए
क्या मेरे अप्रेजल के अंक इतने भा गए

जैसे ही उसने अप्रेजल पत्र मेरी तरफ बढाया
मेरी आँखों के आगे घनघोर अँधेरा छाया

मुझे लगा जैसे मेरे दिल की दीवार को किसी ने गोबर से पोता है
अरे यार बीस रुपये ये भी कोई बढोतरी का इनाम होता है

ये साप्टवेयर इन्ड्स्ट्री है अखाडा नहीं है
ये वेतन बढोतरी है रोहनी आने -जाने का भाडा नहीं है

मेरे चारों तरफ कलि घटा छायी तभी मेरे PM की मोहक आवाज़ आई

तुम सोच रहे होगे के company mgmt का दिमाग फिर गया है
पर बेटा हम क्या करें डालर का भाव 2 रुपये जो गिर गया है

पर फिर भी मुझे लगता है ये पत्र गलत है
मुझे तो लगता है ये प्रिन्टिग की गलती है

तुम HR मैं जाओ और ये पता करके आओ

भाई HR मैं जाने के लिए तैयार होना पड़ता है
वही तो ऐसी जगह है जहाँ सुंदर लड़कियों से पला पड़ता है

ये क्या जहाँ रेनुका बैठी है आज वहां बैठा आपताब है
मैं समझ गया बेटा आज अपना किस्मत ही ख़राब है

उसने मेरा पत्र खोला और खुश हो के बोला

वो बोला श्रीमान आप के लिए खुशखबरी है
आप के पत्र ने प्रिन्टिग की ही गलती है

मैंने कहा मित्र अब देर न लगाएं
और मुझे मेरा सही सही हिसाब किताब बताएं

वो बोला माफ करे श्रीमान ये एक्सीडेंट है
बीस रुपये नहीं दो रुपये आप कि बढोतरी है

मैं क्या करूं आप को ये बताते हुए मेरा दिल रो रहा है
पर क्या करें डालर का भाव भी तो कम हो रहा है

मैं बस वहाँ खडा था कुछ समझ नहीं आ रहा था
मुझसे ज्यादा बढोतरी तो चपरासी वाला पा रहा था

मैंने खुद को संभालाखुद को उठाया
मैं लौटा और सीधे PM के पास आया

मैं सीधा उसके केबिन गया और दरवाज़ा खोला
इस से पहले की वो बोले मैं ही उस से बोला

महाशय ये पैसे वापिस ले लीजिये बात करना फीजूल है
मैं गरीब हूँ पर भीख नहीं लेता ये मेरा उसूल है|

सभार : विपीन खनडूरी

रविवार, अगस्त 01, 2010

दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज से उसके रिश्तों का ताना-बाना बड़ा ही वृहद होता है। वैसे तो उसके रिश्तों की फेहरिस्त बड़ी लंबी होती है, परंतु कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जीने का जुनून जगाते हैं, कुछ कर गुजरने की जिद बन जाते हैं क्योंकि उन रिश्तों में 'प्रेरणा' की ऊर्जा निहित होती है। ये रिश्ते उस स्पंदन की अनुभूति होते हैं, जिनका आधार ही दोस्ती की नींव है। दोस्ती कहें या मित्रता, बोलने-सुनने में भले ही सहज सा लगे परंतु इस आत्मीय रिश्ते की गहराइयाँ पग-पग पर किस तरह हमें अनुकूलता/प्रतिकूलताओं में प्रेरित करती है, हमारा सम्बल बनती है, हमें संभालती है, यह वही समझ सकता है जिसके पास एक अच्छा दोस्त है। कुछ रिश्ते तो निभाए जाते हैं मगर यह इकलौता ऐसा है, जिसे जिया जाता है। 'दोस्ती' जिंदादिली का नाम है। 'दोस्त' बनकर दर्द दूर नहीं किया तो दोस्ती क्या खाक निभाई। सुख-दु:ख में दोस्ती ठंडी हवा का झोंका बनकर गले से लिपट जाती है, जिसका स्नेहिल स्पर्श तनाव में भी सुकून देता है।

सच्चा दोस्त किस्मत वालों को ही मिलता है। आसान नहीं है दोस्त मिलना और खुद किसी का दोस्त बन जाना। क्योंकि आज हम जिन लोगों के साथ घूमते-फिरते हैं। पिक्चर देखते हैं। टाइम पास करने के लिए हँस-बोल लेते हैं। उन्हें ही दोस्त कहने और समझने भी लग जाते हैं। दोस्ती एक अनमोल रिश्ता है जिसमें आदमी कब बँध जाता है। पता ही नहीं चलता। मुश्किल समय में काम आने वाला, नेक सलाह देने वाला मित्र ही सच्चा मित्र है। सच्ची मित्रता को किसी फ्रेंडशिप डे या फ्रेंडशिप बेल्ट जैसी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं होती। उनके लिए प्रत्येक दिन ही मित्रता दिवस होता है। यह दिन शायद उन मित्रों के लिए बना हो जोकि बहुत ही मुश्किल से साल भर में यदा-कदा ही मिल पाते हों तो कम से कम इस दिन उन्हें याद कर लें।

'दोस्ती' की सरगम पर विश्वास के सुर पैरों में अपनेपन के नुपूर बाँधकर थिरकते हैं। 'दोस्ती' के पर्वत से ही प्रेरणा के झरने बहकर सफलतारूपी सरोवर में जा मिलते हैं। 'दोस्ती' वह जुगनू है, जिसकी टिमटिमाती रोशनी प्रतिकूलताओं की निशा में उम्मीद की किरण की तरह हमेशा जगमगाती रहती है।

'दोस्ती' उस सुरभि का नाम है जिसका अहसास 'अपनत्व' का अनुभव कराता है। कोई कहे 'दोस्त' हमदर्द होता है परंतु सच्चाई तो यह है कि 'दोस्त' वह गुरूर होता है, जिसके आश्रय में हममें मुसीबतों से लड़ने का साहस जाग जाता है।

बदलते कालचक्र में भले ही दोस्ती ने नया आयाम ले लिया हो परंतु इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी उसी विश्वास, समर्पण और अगाध स्नेह का पर्याय है, जितना कि वह बीते समय में रहा है। चूँकि समय बलवान है इसलिए बदलता रहता है परंतु तमाम रिश्तों में एक सच्चे दोस्त की 'दोस्ती' का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ होता है।

वॉशिंगटन अर्विंग ने कहा है - सच्ची दोस्ती कभी व्यर्थ नहीं जाती, यदि उसे प्रतिदान नहीं मिलता तो वह लौट आती है और दिल को कोमल और पवित्र बनाती है।

तो बोलिए... क्या आप बन सकते हैं, ऐसे दोस्त। यदि 'हाँ' तो आज ही के दिन से इसकी शुरुआत कीजिए...।

रविवार, फ़रवरी 14, 2010

मैजिकल सॉफ्टवेयर "फोटोस्केचर"

इन्टरनेट के मायाजाल मे उल-जलुल हरकते करते रहने से कुछ न कुछ तो अवश्य ज्ञान की प्राप्ति होती ही रहती है। इस कारण जब भी समय मिलता है निकल पडता हूँ इस तरह के ज्ञान कि खोज मे।

दोस्तों हम जानते हैं कि तुम्हारे अंदर भी एक कलाकार मौजूद है, जो कभी-कभी तुम्हें कैनवास पर हाथ आजमाने के लिए उकसाता रहता है। पहाडों के मनमोहक दृश्य हर किसी का मन मोह लेते हैं। तुम्हारी भी इच्छा होती होगी कि काश, मैं इस दृश्य को कैनवास पर उकेर पाता । आज एक ऐसे सॉफ्टवेयर के बारे में, जो आपकी पेंटर बनने की इच्छा चुटकियों में पूरी कर देगा। न तो इसमें ब्रश की जरूरत है और न ही कैनवास की। मुझे तो यह सॉफ्टवेयर बहुत हि काम का लगा। इससे आप को भी कुछ लाभ मिले, अत: अपने ब्लाग मे इसका उल्लेख करना उचित समझा। तो महाशय तैयार हो जाये ब्रहम ज्ञान का रसपान करने के लिये।

इस मैजिक सॉफ्टवेयर का नाम है फोटोस्केचर। फोटोस्केचर के लिए आप लोगो को कोई कीमत भी नहीं चुकानी है। फोटोस्केचर, पलक झपकते ही डिजिटल फोटो को आर्ट में तब्दील कर देता है। अगर आप किसी घोडे या किसी सुंदर सीनरी की पेंटिग बनाना चाहते हो, तो फोटोस्केचर फटाफट उसे स्केच में बदल देगा। इस मैजिकल सॉफ्टवेयर के जनक है महाशय “डेविड थोइरान” ।

इसके अलावा, आप इस सॉफ्टवेयर की मदद से अपने दोस्तों के फोटोग्राफ्स को स्केच में बदल कर उनके जन्मदिन पर गिफ्ट भी कर सकते हो। इसकी मदद से आप लोगो को बर्थडे कार्ड, ग्रीटिंग स्टेशनरी या फिर किसी भी आर्ट का प्रिंट लेकर उसे अपने कमरे की दीवार पर भी टांग भी सकते हो। फोटोस्केचर में कई सारे स्केच, पेन और इंक ड्राइंग जैसे ऑप्शन भी दिए गए हैं। फोटोशॉप की तरह फोटोस्केचर में भी किसी भी फोटो का फाइन किया जा सकता है, उसका स्केच तैयार किया जा सकता है। और भी बहुत कुछ है इस सॉफ्टवेयर में । इसी बात को तो कहते हैं हर्र लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा आए। फोटोस्केचर को आप http://www.fotosketcher.com/ मुफ्त से डाउनलोड कर सकते हो। इस सॉफ्टवेयर के विषय मे और अधिक जानकारी आप यहा से पा सकते है।

तो देर किस बात की है आजमाइये इसे और बन जाइये पेन्टर और स्केचर ।

"माइ नेम इज खान एंड आय एम नॉट अ टेरेरिस्ट"


वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 को हुए आतंकी हमले के बाद दुनियाभर में एक समुदाय के प्रति बदली सोच को लेकर अब तक आधा दर्जन के करीब फिल्में बन चुकी हैं। 9/11 हमले के बाद दुनिया के कई देशों में मुस्लिम समुदाय के प्रति यकायक बदली सोच पर करण ने एक ऐसी प्रेम कहानी का सहारा लिया है जो आम बॉलिवुड फिल्मों से कोसों दूर है। करण की इस फिल्म में एक ऐसे युवक का अपना खोया हुआ प्यार फिर से हासिल करने का सफर दिखाया गया है जो आम इंसानों से हटकर है। फिल्म में रिजवान द्वारा बार - बार बोला गया डायलॉग "माइ नेम इज खान एंड आय एम नॉट अ टेरेरिस्ट" हॉल में बैठे दर्शक के दिल को छूता है। दरअसल , करण अपनी इस फिल्म के माध्यम से दुनिया को शायद यही मेसेज देना चाहते हैं कि ' हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है। ' करण जौहर अपनी प्रेम मुहब्बत, रोने धोने वाले फार्मूले से मुक्ति की छटपटाहट से बाहर आने की कोशिश कर रहे है। उन्हें हमारे हौसले की जरूरत है। माय नेम इज खान के जरिए वे यह बताना चाह रहे हैं कि दुनिया मे सिर्फ दो ही किस्म के इंसान होते हैं, अच्छे और बुरे।

यह फिल्म हमारे भीतर छुपे शैतान को पत्थर मारने में हमारी मदद करती है जहां बाल ठाकरे या बजरंग दलियों ने यह मान लिया है कि खान सरनेम का अर्थ ही धोखेबाज और आतंकवादी होना है। यह एसपर्जर सिंड्रोम से पीडित रिजवान खान की कहानी है, जिसे नई जगह, पीले रंग और तेज शोर से डर लगता है लेकिन वह बहुत ही समझदार और ज्ञानी भी है। धुन का पक्का है। मानवीय नजरिया उसे उसकी मां, उसके टीचर वाडिया और इस्लाम से उसे विरासत में मिला है। वह अमेरिका में एक लड़की मंदिरा के सैलून मे अपने ब्यूटी प्रोडक्ट बेचने जाता है और उसी से प्यार कर बैठता है। मंदिरा तलाकशुदा है और उसके पहले से एक बच्चा है। शादी के बाद उसका सरनेम मंदिरा खान और उसके बेटे का नाम समीर खान हो जाता है। 9/11 से पहले सब कुछ ठीक था लेकिन उसके बाद पूरी दुनिया ने करवट ली खान सरनेम की वजह से एक हादसा होता है। दोनों पति पत्नी अलग हो जाते हैं। मंदिरा उसे चुनौती देती है कि किस किस के सामने वह बेगुनाही का सबूत देगा कि तुम्हारा नाम खान है और तुम टेरेरिस्ट नहीं हो। यहां से खान अमेरिका के प्रेसीडेंट से मिलने की यात्रा शुरू करता है। जहां जहां राष्ट्रपति को जाना होता है, वहां वह पहुंचता है, लेकिन मिल नहीं पाता। फिल्म इसी यात्रा को आगे बढाती है और अंजाम तक पहुंचती है। इस यात्रा में रिजवान खान एक नायक बनकर उभरता है। जॉर्जिया में छोटे से गांव के लोगों को बचाने में रिजवान खान अकेला जुटा तो उसके पीछे सैकड़ों लोग राहत सामग्री लेकर आए हैं। जहां वह काउंटर पर कमरे की सिर्फ जानकारी लेने गया था वहां भी होटल मालिक ने बोर्ड टांग लिया है कि यहां खान ठहरा था। कहानी में बीच में कहीं ठहराव और एकरसता आती है लेकिन सारे नंबर शाहरूख खान को इसलिए जाते हैं कि वह अभिनय के एक नए अवतार में सामने है।

9/11 हादसे को एक ऐसे नजरिए के साथ देखना चाहते हैं जो अब तक अनदेखा रहा तो फिल्म आपके लिए है। माइ नेम इज खान की तारीफ इसलिए भी जरुरी है क्योकि हमारी राजनीति और आदमी की लिप्साओं ने भेदभाव का जो अमानवीय चेहरा हमारे सामने बना लिया है उसे चुनौती दी जा सके।

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

मिलें सुर मेंरा तूम्हारा @2010

15 अगस्त , 1988 को दूरदर्शन में जारी उस म्यूजिकल फिल्म को भाषा के सभी बंधन तोड़ते हुए देश के बच्चे - बच्चे ने अपने दिल में बसा लिया था। जब भी इसका टेलिकास्ट होता, सब काम रोककर पूरे 16 मिनट तक उसमें अपने सुर मिलाते थे। मै तब लगभग 6-7 साल का रहा हूँगा । और अब 2010 में इंडिया को एक बार फिर वही सुर लौटाए है।
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फिर मिले सुर का नया विडियो देश भर की 15 लोकेशनों पर शूट किया गया है। पुराने वाले गीत में जहां 26 महान हस्तियों ने हिस्सा लिया था , वहीं नए विडियो में 68 पर्सनैलिटीज हैं। मॉडर्न इंडिया की झलक देने के लिए इसमें बिग बी से लेकर , ए . आर . रहमान और सलमान खान से लेकर बेडमिंटन प्लेयर साइना नेहवाल तक अपने सुर मिला रहे हैं। हर आर्टिस्ट की ओर से इसमें एक सामाजिक संदेश दिया गया है , जिसे ऐतिहासिक स्थलों पर शूट किया गया है। बिग बी के लिए यह विडियो सबसे खास है , क्योंकि वह अकेली ऐसी शख्सियत हैं , जो इसके पहले विडियो में भी थे। कॉरपोरेट कपल आरती और कैलाश सुरेंद्रनाथ ने फिर मिले सुर को प्रड्यूस किया है।

ऑरिजिनल मिले सुर में जहां पंडित भीमसेन जोशी , अमिताभ बच्चन , कमल हसन , लता मंगेशकर , प्रकाश पादुकोण जैसे आइकॉन थे , तो इस बार नई जेनरेशन के नए आइकॉन सितार वादक अनुष्का शंकर , सरोद वादक अमान और अयान , शूटर अभिनव बिंद्रा , बॉक्सर विजेंदर सुर मिला रहे हैं।

पिछले विडियो का कॉन्सेप्ट सुरेश मलिक ने तैयार किया था और पीयूष पांडेय ने लिखा था। नए विडियो की शानदार सिनेमेटॉग्रफी और म्यूजिक है लुई बैंक्स का। पुराने विडियो में भी लुई बैंक्स ने पी . वैद्यनाथन के साथ मिलकर म्यूजिक तैयार किया था।

(हिन्दी) मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
मिले सुर मेरा तुम्हारा …

(कश्मीरी) चॉन्य् तरज़ तय म्यॉन्य् तरज़
इक-वट बनि यि सॉन्य् तरज़

(पंजाबी) तेरा सुर मिले मेरे सुर दे नाल
मिलके बणे एक नवा सुर ताल

(हिन्दी) मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

(सिन्धी) मुहिंजो सुर तुहिंजे साँ प्यारा मिले जडेंह
गीत असाँजो मधुर तरानो बणे तडेंह

(उर्दू) सुर का दरिया बह के सागर में मिले

(पंजाबी) बदलाँ दा रूप लैके बरसन हौले हौले

(तमिल) इसैन्दाल नम इरुवरिन सुरमुम नमदक्कुम
तिसै वॆरु आनालुम आऴि सेर
मुगिलाय मऴैयय पोऴिवदु पोल इसै
नम इसै…

(कन्नड) नन्न ध्वनिगॆ निन्न ध्वनिय,
सेरिदन्तॆ नम्म ध्वनिय

(तेलुगु) ना स्वरमु नी स्वरमु संगम्ममै,
मन स्वरंगा अवतरिंचे .

(मलयालम) निंडॆ स्वरमुम् नींगळुडॆ स्वरमुम्
धट्टुचॆयुम् नमुडॆय स्वरम .

(बाङ्ला) तोमार शुर मोदेर शुर
सृष्टि करूर अइको शुर

(असमिया) सृष्टि हो करून अइको तान

(उड़िया) तोमा मोरा स्वरेर मिलन
सृष्टि करे चालबोचतन

(गुजराती) मिले सुर जो थारो म्हारो
बणे आपणो सुर निरालो

(मराठी) माँझा तुमच्या जुलता तारा
मधुर सुराँचा बरसती धारा

(हिन्दी) सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
तो सुर बने हमारा

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हालांकि इसे रिलीज हुए अभी कुछ हि दिन हुए है , लेकिन यंगस्टर्स में यह अभी से पॉप्युलर हो गया है। यूट्यूब में पहले ही दिन इसे 2600 से ज्यादा हिट्स मिले। इंटरनेट पर चैट रूम्स हों या डिस्कशन बोर्ड , ब्लॉग्स हों या फिर ऑरकुट या फेसबुक की कम्युनिटीज ... सब जगह यंगस्टर्स फिर मिले सुर पर बातचीत करते नजर आ रहे हैं। हालांकि कुछ को इसमें बॉलिवुड की ओवरडोज लग रही है , लेकिन ज्यादातर युवा इस बात से खुश हैं कि इसमें राज्यों को अनेकता पर महत्व न देते हुए देश को एक यूनिट की तरह दिखाया गया है। हर सिलेब्रिटी को किसी एक खास राज्य से जोड़कर दिखाने की बजाय पूरे देश की एकता पर जोर दिया गया है।

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

सबसे बड़ी मदद

एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज पर कुछ सिक्के रखते हुए कहा, 'आपने बुरे वक्त में जो सहायता की थी, मैं उसके लिए बहुत आभारी हूं। पर अब मैं अपनी मेहनत से इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका कर्ज वापस कर सकूं। मैं यह सिक्के आपको वापस करने आया हूं।' बेंजामिन फ्रैंकलिन की बात सुनकर वह सज्जन उन्हें घूरते हुए बोले, 'क्षमा करिए, पर मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे यह याद है कि मैंने किसी को उधार दिया था।' बेंजामिन ने कहा, 'मैं उन दिनों एक प्रेस में अखबार छापने का काम करता था। एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई तब मैंने आपसे बीस डॉलर लिए थे।' यह सुनकर उस व्यक्ति ने अपने बीते दिनों को याद किया तो उन्हें स्मरण हो आया कि एक बालक प्रेस में काम करता था और एक दिन उसके बीमार होने पर उन्होंने उसकी मदद की थी।

यह याद आने पर उस व्यक्ति ने कहा, 'हां, मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मनुष्य का सहज धर्म है कि वह आपत्तिग्रस्त व्यक्ति की सहायता करे। इन सिक्कों को आप अपने पास ही रखें और कभी कोई जरूरतमंद व्यक्ति आपकी नजरों में आए, तो उसे दे दीजिएगा।' इस बात से बेंजामिन बहुत प्रभावित हुए और उन्हें नमस्कार कर उन सिक्कों को वापस अपने साथ ले आए। इसके बाद उन्होंने एक जरूरतमंद युवक को वे सिक्के दिए। जब उस युवक ने सिक्के लौटने चाहे तो बेंजामिन ने कहा, 'दोस्त, जब तुम सक्षम हो जाओगे तो अपने जैसे किसी जरूरतमंद को ये सिक्के दे देना। मैं समझूंगा कि मेरे पैसे मुझे मिल गए।' वह युवक बोला, 'मैं ऐसा ही करूंगा।' इसके बाद बेंजामिन उस युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, 'किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही इंसानियत है। अगर हम किसी की मदद करते हैं तो वह मदद सौ गुना अधिक होकर हमारे पास वापस आती है और हमें कामयाब बनाती है।'

संकलन: रेनू सैनी (नवभारत टाइंम्स)