खुद से प्रेम करना सीखे। खुद को स्वीकारे। कोई भी मनुष्य पूर्ण नही होता। हर एक इंसान मे कई अच्छे बुरे गुण समाहित होते है। हमे अपने अच्छे गुणो का निरंतर विकास और द्रुगुणो का मिटाने का प्रयास करना चाहिये। जब तक हम खुद को अपने सम्मुख जैसे है, वैसे नही स्वीकारेगे तब तक हम अपने आप मे वो बदलाव नही ला पायेगे जो हम लाना चाहते है। बदलाव तभी संभव भी हो पायेगा जब हमारी अपनी नजरो मे हमारी तस्वीर एकदम साफ होगी। फिर चाहे दूसरे कुछ भी सोचे। हम क्या है, यह हमारे स्वयं द्रारा तय होना चाहिए। इस संबध मे हम ही है जो दूसरो से ज्यादा जानते है न कि दूसरो से प्रमाण पत्र की चाह मे अपनी स्वयं की कोई दृष्टि ही विकसित कर पाये।
यदि किसी ने भी आपके लिए कुछ किया है, उनके आप एहसानमंद रहे और उनके लिए सदैव आगे बढकर कुछ करने के लिए तैयार रहे। लेकिन उन एहसानो के बदले मे आपके जींवन की दिशा उनके द्रारा तय नही होनी चाहिए। आप अपने जींवन मे किसी को दखल देने का कितना अधिकार है, यह आप स्वयं तय करोगे।अपनी एक सोच व्यक्तित्व बनाये, अपनी सोच को परिपक्व रूप दे क्योकि ये जिन्दगी तुम्हारी है।
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