मंगलवार, दिसंबर 19, 2006

संर्घष आवश्यक है।

जिन्दगी एक रहगुजर की तरह है और हम मुसाफिर, जिसके रास्ते मे अनेक रंग देखने को मिलते है। कभी खुशी का उजाला तो कभी गम का अंधेरा। जब हमारा गमो से पाला पडता है तो हमे चारो तरफ निराशा के बादल दिखाई देने लगते है और हम घबरा जाते है। पर निराशा के बादल गहरे है तो क्या हुआ। जिस तरह रात चाहे कितनी भी काली क्यो न हो सवेरा तो होता ही है। उसी तरह से निराशा के बादल भी छट जायेगे। किसी मुश्किल को देखकर भागने से या हाथ पर हाथ रखकर बैठने से मुश्किल हल नही हो जाती। किसी भी मुश्किल से डरे नही बल्कि ये सोचे की मुश्किल से मुकाबला कैसे करे। कैसे हम दुःख के पलो मे भी खुशियो के कुछ पल हासिल कर सकते है।
कुछ लोग सिर्फ सपने देखते है, दूसरो के सहारे जीते है, पंगु बनकर संघर्ष करना नही चाहते है। अपने पैरो पर कभी नही चलते, न ही पैरो पर चलना सीखना चाहते है। दरअसल अपने पैरो पर चलना बहुत कठिन होता है, बहुत सहना पडता है। जिन्दगी खुशिया उन्ही के आगे फैलाती है जो आखरी सांस तक लडना जानते है। जो लोग जिन्दगी के किसी पडाव को ही अपनी मंजील समझ लेते है उन्हे वह नही मिल पाता जिसके वो असली हकदार होते है। अचानक कुछ नही घटता, जो होता है धीरे धीरे होता रहता है, जिस दिन पूरी तरह होता है उस दिन हम उसका होना जान पाते है।

अतः जिन्दगी मे संर्घष आवश्यक है। हमे जिन्दगी के इस संर्घष मे विजेता बनना है। प्रयास करते रहने है। प्रयास हमे सफलता के लिये त्याग करने तथा अपनी गलतियो को सुधारने की प्रेरणा देता है। उतार चढाव तो आते रहते है, और शुरूआत.....वह तो हम सभी को करनी होती है आर करते भी है। हम सब सुबह जागते है तो वह नए सिरे से उस दिन की शुरूआत होती है।

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