शुक्रवार, मार्च 30, 2007

एक कहानी

आज हम चिट्ठाकार मित्रो को एक कहानी सुनाते है। यह कहानी अच्छी हि नही बल्कि हमारे सामाजिक जीवन एवम पैशे के लिये भी महत्वपूर्ण है। तो शुरु करे । एक धोबी महाशय होते है, जिनके पास दो गधे होते है। गधा अ ओर गधा स । अ का मनना था कि वह बहुत फुर्तीला और हर कार्य को स से अच्छा कर सकता है। वह हमेशा धोबी का विश्वासपात्र और चहेता बनना चाहता था इस कारण वह ज्यादा बोझ उठाने तथा धोबी के साथ चलने की कोशिश करता। बेचारी स बहुत सीधा और साधारण विचारो का था। वह अपनी क्षमता के हिसाब से बोझ उठाता एवं औसत चाल से चलता। अ के कार्य को देखकर धोबी ने स पर अ के बराबर कार्य करने के लिये दबाव डालना शुरू कर दिया। स ने भी थोडी बहुत कोशिश की परन्तु ज्यादा सफल न हो सका। इस कारण वह हमेशा की मार खाता।
बेचारा स काफी दुखी था उसने अ से विन्रमतापूर्वक प्रार्थना कर कहा प्रिय मित्र यहा पर सिर्फ हम दो ही है इसलिये क्यो एक दूसरे से आगे निकलने के लिये दौड करे। आपको ज्ञात है कि मैं ज्यादा बोझ उठाने मे असर्मथ हूँ। हम बराबर बोझ उठाते है और औसत चाल से चले। परन्तु अ कहा मानने वाला था। अगले दिन अ ने ईष्या के कारण और दिन की अपेक्षा थोडा ज्यादा वजन उठाया और अपनी रफ्तार भी बढा दी। स ने भी थोडी बहुत कोशिश की परन्तु ज्यादा सफल न हो सका। स के कार्य को देखकर धोबी काफी खफा था। बेचारा स नित्य मार खाता रहता। अ यह देखकर काफी खुश होता। एक दिन स अत्यधिक मार से चल बसा। अ अपने आप को सर्वोच समझने लगा पर कुछ समय पश्चात ही उसका यह भ्रंम टूट गया। अब उसे स का भी कार्य करना पडता वो भी दोहरे रफ्तार से। अत्यधिक कार्य करने के कारण बेचारा बिमार पड गया। अब उससे ज्यादा नही उठता था और रफ्तार मे भी कमी आ गयी थी। स के कार्य करने की क्षमता मे गिरावट देखकर धोबी को काफी गुस्सा आता। धोबी ने स से भी मार मार कार्य कराना शुरू कर दिया। स अपने कार्य करने की क्षमता को न बढा सका और एक दिन ने धोबी उसे लात मारकर चला गया नये गधे ढूढने।
यहा पर इस कहानी का अन्त नही है पर इस से हमे व्यवसायिक और सामाजिक शिक्षा मिलती है कि हमे अपने सभी साथियो को समान समझना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति कि अपनी क्षमता होती है। कभी भी अपने स्वामी के आगे जरूरत से ज्यादा दिखावा नही करना चाहिए और न ही साथियो को दबाव मे देखकर प्रसन्न होना चाहिए। इस बात से कोई फर्क नही पडता आप अ हो या स लेकिन आप अपने स्वामी के लिये गधे हो। आखिर मैं यही कहना चाहूगा कि जरूरत से ज्यादा काम करने की कोशिश न करे बल्कि काम को चतुराई से करे। सफलता कोई नियत स्थान नही है बल्कि एक यात्रा है। आशा करता हूँ आप लोग इस कहानी से कुछ सीख जरूर लेगे।

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