सोमवार, मार्च 19, 2007

शुरू में ही भारत की शर्मनाक हार

किसी भी खेल के हार और जीत दो जरूरी पहलू होते है जैसे किसी सिक्के का एक तरफ हैड तो दूसरी तरफ टैंल। विश्वकप के एक बहुत ही उलटफेर भरे मैच में बांग्लादेश की टीम ने भारत को 5 विकेट से हरा दिया। बांग्लादेश की टीम ने भारत को खेल के हर क्षेत्र में पछाड़ते यह ऐतिहासिक जीत दर्ज की। चूंकि यह मैमने द्वारा शेर का शिकार करना जैसी घटना है इसलिए यह क्रिकेट प्रेमियों को कुपित करने के लिये काफी है और जो स्वाभाविक भी है। इस घुटनाटेक पराजय के बाद भारतीय टीम की सफलता के लिए लिखे और गाए-बजाए गए सारे तराने बेसुरे हो गये है, सारे हवन-कीर्तन विफल हो गये। क्या कारण है बांग्लादेश के हाथों भारतीय टीम की ये दुर्गति हुई? अपने आप पर जरूरत से ज्यादा भरोसा, प्रतिद्वंद्वी टीम को नौसिखिया और कमजोर समझना या खेल से अधिक विज्ञापन बाजी में ध्यान लगाना है? मेरे विचार से प्रमुख कारण देश के खिलाड़ीयो का खेल के बजाए धन कमाने पर अधिक ध्यान एवं प्रसिद्धि बटोरने के फेर में पड़ जाना है। इन स्थितियों में मैदान पर उनका प्रदर्शन प्रभावित होना तय है।


भारतीय टीम ने खेल के प्रत्येक क्षेत्र में जैसा लचर प्रदर्शन किया और साथ ही जैसे हाव-भाव दिखाए उससे उसके पाकिस्तान की राह पर चल निकलने का खतरा पैदा हो गया है। ऐसा लगता है कि टीम इंडिया ने अपना सारा दमखम अभ्यास मैचों में ही दिखा दिया। नि:संदेह ऐसे रद्दी खेल के बल पर कोई टीम विश्व विजेता बनने का ख्वाब देखने की भी हकदार नहीं। पहले ही मैच में बुरी तरह पिटने के बाद यदि टीम इंडिया के साथ ही उसके कोच ग्रेग चैपल पर गुस्सा उतारा जा रहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।हम पहले भी देख चुके है कि भारतीय टीम अतीत में भी बुरी तरह पिटने के बाद बेहतर खेल दिखा चुकी है इसलिए यह अपेक्षा बनाए रखी जानी चाहिए कि वह आगे अपने हालिया प्रदर्शन को दोबारा नही दोहरायेगी, लेकिन इस एक पराजय ने यह तो बता ही दिया कि हमारी टीम में बुनियादी स्तर पर कोई बड़ी खामी है।


नि:संदेह यह खामी टीम इंडिया के प्रबंधन तंत्र में भी है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी टीम हो जो इतना प्रसिद्धि, पैसा और प्यार पाने के बावजूद अपने खेल के स्तर को ऊंचा उठाने में नाकाम साबित हुई हो। यह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का प्राथमिक दायित्व बनना चाहिए था कि हमारी टीम इस खेल के हर स्तर पर श्रेष्ठता कायम करे, लेकिन ऐसा लगता है कि उसकी प्राथमिकताओं में केवल धन जुटाना शामिल है। आखिर क्या कारण है कि भारतीय टीम की रैंकिंग ऊपर उठने का नाम नहीं ले रही है? क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि विश्व कप जीतने का दावा करने वाली टीम इंडिया के लिए अब यह दुआ करनी पड़ रही है कि वह बरमूडा से तो अच्छी तरह जीत जाए? यह दुआ करनी पड़ रही है तो इसीलिए कि हमारी टीम ने जीत के लिए तनिक भी जज्बा नहीं दिखाया। दरअसल उसने क्रिकेट प्रेमियों के भरोसे को ही नहीं तोड़ा, बल्कि उन्हें शर्मिदा भी किया है।

राँची में नाराज क्रिकेटप्रेमियों ने धोनी के नए मकान के निर्माण स्थल पर धावा बोलकर उनके खिलाफ नारेबाजी की और एक निर्माणाधीन चारदीवारी को क्षतिग्रस्त कर दिया,कानपुर में सहवाग और विकेटकीपर धोनी के पुतले फूँके गए, जयपुर और वाराणसी में भी टीम इंडिया के खिलाड़ियों के पुतले जलाए गए। कोलकाता में लोगों ने कोच ग्रेग चैपल और कप्तान राहुल द्रविड़ के खिलाफ प्रदर्शन किया। जालंधर के कम्पनी बाग में खिलाड़ियों के पोस्टर जलाए गए।

लेकिन क्रिकेट प्रेमियों को यह ध्यान रखना होगा कि उनका रोष अराजकता में तब्दील न होने पाए। उन्हें अपनी नाराजगी और निराशा जाहिर करने का पूरा अधिकार है, लेकिन संयमित और मर्यादित ढंग से। नि:संदेह क्रिकेट हम भारतीयों के खून में रच-बस सा गया है, लेकिन है तो आखिर वह एक खेल ही। एक मैच में मिली पराजय के बाद सब कुछ गंवा देने का भाव ठीक नहीं।

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