इन्टरनेट के मायाजाल मे उल-जलुल हरकते करते करते एक मज़ेदार शायरी मिली, सोचा आप लोगो मे भी बाटा जाये
लोग रूठ जाते हैं मुझसे
और मुझे मनाना नहीं आता,
मैं चाहता हूँ क्या
मुझे जताना नहीं आता,
आँसुओं को पीना पुरानी आदत है
मुझे आंसू बहाना नहीं आता,
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का
इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता,
अब क्या कहूँ मैं
क्या आता है, क्या नहीं आता,
बस मुझे मौसम की तरह
बदलना नहीं आता
कहिए कैसी लगी, एक एक शब्द मेरे तो दिल मे लग गया, क्या दर्द है, शायर महोदय का तो पता नही चल पाया आप को पता लगे तो मुझे भी बतलाईएगा
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