
गांव से भागकर मद्रास आई रेशमा(विद्या बालन) की ख्वाहिश है कि वह भी फिल्मों में काम करे। यह किसी भी सामान्य किशोरी की ख्वाहिश हो सकती है। फर्क यह है कि निरंतर छंटनी से रेशमा की समझ में आ जाता है कि उसमें कुछ खास बात होनी चाहिए। जल्दी ही उसे पता चल जाता है कि पुरुषों की इस दुनिया में कामयाब होने के लिए उसके पास एक अस्त्र है.. उसकी अपनी देह। अभिनेत्री बनने के सपने को साकार करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इस एहसास के बाद वह हर शर्म तोड़ देती है। रेशमा से सिल्क बनने में उसे समय नहीं लगता। पुरुषों में अंतर्निहित तन और धन की लोलुपता को वह खूब समझती है। सफलता की सीढि़यां चढ़ती हुई फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा बन जाती है।
स्टारडम की ऊंचाईयों पर पहुंचने के बाद सिल्क को सच्चे प्यार की तलाश है। उसे कई लोग मिलते भी हैं मगर सब धोखा दे जाते है। सबसे पहले उनके को स्टार सूर्यकांत(नसीरुद्दीन शाह) उनकी जिंदगी में आते हैं मगर उन्हें सिल्क नहीं बल्कि उसके जिस्म से प्यार है। इसके बाद स्क्रिप्ट राइटर रमाकांत(तुषार कपूर)भी उन्हें उन्हें धोखा देकर उनका दिल तोड़ देते हैं ।
प्यार में मिले धोखे से सिल्क एकदम टूट जाती है और उसका करियर भी ढलान पर आने लगता है। अंत में निर्देशक (इब्राहीम) इमरान हाशमी के रूप में उन्हें सच्चा प्यार जरुर मिलता है मगर तब तक वो पूरी तरह से टूट चुकी होती है और आत्मह्त्या का फेसला चुन चुकी होती है ।
फिल्म की कहानी को इसका संगीत और दिलचस्प बनाता है। उह ला ला... और इश्क सूफियाना... जैसे गाने पहले ही जबरदस्त लोकप्रिय हो चुके हैं। उह ला ला... तो मेरा पेवरेट गाना बना हुआ है । इश्क सूफियाना अनावश्यक और ठूंसा हुआ लगता है पर चलाया जा सकता है।
क्यों देखें:सिल्क बनी विद्या की जबरदस्त अभिनय प्रतिभा और इस वीकेंड में अगर एक विशुद्ध मनोरंजक फिल्म देखने की इच्छा रखते हैं तो 'डर्टी पिक्चर' जरूर देखिएगा
क्यों न देखें: परिवार के साथ देखने लायक नही, दोहरे अर्थ वाले संवाद
मेरे दोनों मित्रों ने तो 'डर्टी पिक्चर' को पाँच में से 2 अंक दिये है पर मेरे हिसाब से 3 अंक तो बनते है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें