रविवार, फ़रवरी 14, 2010

मैजिकल सॉफ्टवेयर "फोटोस्केचर"

इन्टरनेट के मायाजाल मे उल-जलुल हरकते करते रहने से कुछ न कुछ तो अवश्य ज्ञान की प्राप्ति होती ही रहती है। इस कारण जब भी समय मिलता है निकल पडता हूँ इस तरह के ज्ञान कि खोज मे।

दोस्तों हम जानते हैं कि तुम्हारे अंदर भी एक कलाकार मौजूद है, जो कभी-कभी तुम्हें कैनवास पर हाथ आजमाने के लिए उकसाता रहता है। पहाडों के मनमोहक दृश्य हर किसी का मन मोह लेते हैं। तुम्हारी भी इच्छा होती होगी कि काश, मैं इस दृश्य को कैनवास पर उकेर पाता । आज एक ऐसे सॉफ्टवेयर के बारे में, जो आपकी पेंटर बनने की इच्छा चुटकियों में पूरी कर देगा। न तो इसमें ब्रश की जरूरत है और न ही कैनवास की। मुझे तो यह सॉफ्टवेयर बहुत हि काम का लगा। इससे आप को भी कुछ लाभ मिले, अत: अपने ब्लाग मे इसका उल्लेख करना उचित समझा। तो महाशय तैयार हो जाये ब्रहम ज्ञान का रसपान करने के लिये।

इस मैजिक सॉफ्टवेयर का नाम है फोटोस्केचर। फोटोस्केचर के लिए आप लोगो को कोई कीमत भी नहीं चुकानी है। फोटोस्केचर, पलक झपकते ही डिजिटल फोटो को आर्ट में तब्दील कर देता है। अगर आप किसी घोडे या किसी सुंदर सीनरी की पेंटिग बनाना चाहते हो, तो फोटोस्केचर फटाफट उसे स्केच में बदल देगा। इस मैजिकल सॉफ्टवेयर के जनक है महाशय “डेविड थोइरान” ।

इसके अलावा, आप इस सॉफ्टवेयर की मदद से अपने दोस्तों के फोटोग्राफ्स को स्केच में बदल कर उनके जन्मदिन पर गिफ्ट भी कर सकते हो। इसकी मदद से आप लोगो को बर्थडे कार्ड, ग्रीटिंग स्टेशनरी या फिर किसी भी आर्ट का प्रिंट लेकर उसे अपने कमरे की दीवार पर भी टांग भी सकते हो। फोटोस्केचर में कई सारे स्केच, पेन और इंक ड्राइंग जैसे ऑप्शन भी दिए गए हैं। फोटोशॉप की तरह फोटोस्केचर में भी किसी भी फोटो का फाइन किया जा सकता है, उसका स्केच तैयार किया जा सकता है। और भी बहुत कुछ है इस सॉफ्टवेयर में । इसी बात को तो कहते हैं हर्र लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा आए। फोटोस्केचर को आप http://www.fotosketcher.com/ मुफ्त से डाउनलोड कर सकते हो। इस सॉफ्टवेयर के विषय मे और अधिक जानकारी आप यहा से पा सकते है।

तो देर किस बात की है आजमाइये इसे और बन जाइये पेन्टर और स्केचर ।

"माइ नेम इज खान एंड आय एम नॉट अ टेरेरिस्ट"


वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 को हुए आतंकी हमले के बाद दुनियाभर में एक समुदाय के प्रति बदली सोच को लेकर अब तक आधा दर्जन के करीब फिल्में बन चुकी हैं। 9/11 हमले के बाद दुनिया के कई देशों में मुस्लिम समुदाय के प्रति यकायक बदली सोच पर करण ने एक ऐसी प्रेम कहानी का सहारा लिया है जो आम बॉलिवुड फिल्मों से कोसों दूर है। करण की इस फिल्म में एक ऐसे युवक का अपना खोया हुआ प्यार फिर से हासिल करने का सफर दिखाया गया है जो आम इंसानों से हटकर है। फिल्म में रिजवान द्वारा बार - बार बोला गया डायलॉग "माइ नेम इज खान एंड आय एम नॉट अ टेरेरिस्ट" हॉल में बैठे दर्शक के दिल को छूता है। दरअसल , करण अपनी इस फिल्म के माध्यम से दुनिया को शायद यही मेसेज देना चाहते हैं कि ' हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है। ' करण जौहर अपनी प्रेम मुहब्बत, रोने धोने वाले फार्मूले से मुक्ति की छटपटाहट से बाहर आने की कोशिश कर रहे है। उन्हें हमारे हौसले की जरूरत है। माय नेम इज खान के जरिए वे यह बताना चाह रहे हैं कि दुनिया मे सिर्फ दो ही किस्म के इंसान होते हैं, अच्छे और बुरे।

यह फिल्म हमारे भीतर छुपे शैतान को पत्थर मारने में हमारी मदद करती है जहां बाल ठाकरे या बजरंग दलियों ने यह मान लिया है कि खान सरनेम का अर्थ ही धोखेबाज और आतंकवादी होना है। यह एसपर्जर सिंड्रोम से पीडित रिजवान खान की कहानी है, जिसे नई जगह, पीले रंग और तेज शोर से डर लगता है लेकिन वह बहुत ही समझदार और ज्ञानी भी है। धुन का पक्का है। मानवीय नजरिया उसे उसकी मां, उसके टीचर वाडिया और इस्लाम से उसे विरासत में मिला है। वह अमेरिका में एक लड़की मंदिरा के सैलून मे अपने ब्यूटी प्रोडक्ट बेचने जाता है और उसी से प्यार कर बैठता है। मंदिरा तलाकशुदा है और उसके पहले से एक बच्चा है। शादी के बाद उसका सरनेम मंदिरा खान और उसके बेटे का नाम समीर खान हो जाता है। 9/11 से पहले सब कुछ ठीक था लेकिन उसके बाद पूरी दुनिया ने करवट ली खान सरनेम की वजह से एक हादसा होता है। दोनों पति पत्नी अलग हो जाते हैं। मंदिरा उसे चुनौती देती है कि किस किस के सामने वह बेगुनाही का सबूत देगा कि तुम्हारा नाम खान है और तुम टेरेरिस्ट नहीं हो। यहां से खान अमेरिका के प्रेसीडेंट से मिलने की यात्रा शुरू करता है। जहां जहां राष्ट्रपति को जाना होता है, वहां वह पहुंचता है, लेकिन मिल नहीं पाता। फिल्म इसी यात्रा को आगे बढाती है और अंजाम तक पहुंचती है। इस यात्रा में रिजवान खान एक नायक बनकर उभरता है। जॉर्जिया में छोटे से गांव के लोगों को बचाने में रिजवान खान अकेला जुटा तो उसके पीछे सैकड़ों लोग राहत सामग्री लेकर आए हैं। जहां वह काउंटर पर कमरे की सिर्फ जानकारी लेने गया था वहां भी होटल मालिक ने बोर्ड टांग लिया है कि यहां खान ठहरा था। कहानी में बीच में कहीं ठहराव और एकरसता आती है लेकिन सारे नंबर शाहरूख खान को इसलिए जाते हैं कि वह अभिनय के एक नए अवतार में सामने है।

9/11 हादसे को एक ऐसे नजरिए के साथ देखना चाहते हैं जो अब तक अनदेखा रहा तो फिल्म आपके लिए है। माइ नेम इज खान की तारीफ इसलिए भी जरुरी है क्योकि हमारी राजनीति और आदमी की लिप्साओं ने भेदभाव का जो अमानवीय चेहरा हमारे सामने बना लिया है उसे चुनौती दी जा सके।

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

मिलें सुर मेंरा तूम्हारा @2010

15 अगस्त , 1988 को दूरदर्शन में जारी उस म्यूजिकल फिल्म को भाषा के सभी बंधन तोड़ते हुए देश के बच्चे - बच्चे ने अपने दिल में बसा लिया था। जब भी इसका टेलिकास्ट होता, सब काम रोककर पूरे 16 मिनट तक उसमें अपने सुर मिलाते थे। मै तब लगभग 6-7 साल का रहा हूँगा । और अब 2010 में इंडिया को एक बार फिर वही सुर लौटाए है।
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फिर मिले सुर का नया विडियो देश भर की 15 लोकेशनों पर शूट किया गया है। पुराने वाले गीत में जहां 26 महान हस्तियों ने हिस्सा लिया था , वहीं नए विडियो में 68 पर्सनैलिटीज हैं। मॉडर्न इंडिया की झलक देने के लिए इसमें बिग बी से लेकर , ए . आर . रहमान और सलमान खान से लेकर बेडमिंटन प्लेयर साइना नेहवाल तक अपने सुर मिला रहे हैं। हर आर्टिस्ट की ओर से इसमें एक सामाजिक संदेश दिया गया है , जिसे ऐतिहासिक स्थलों पर शूट किया गया है। बिग बी के लिए यह विडियो सबसे खास है , क्योंकि वह अकेली ऐसी शख्सियत हैं , जो इसके पहले विडियो में भी थे। कॉरपोरेट कपल आरती और कैलाश सुरेंद्रनाथ ने फिर मिले सुर को प्रड्यूस किया है।

ऑरिजिनल मिले सुर में जहां पंडित भीमसेन जोशी , अमिताभ बच्चन , कमल हसन , लता मंगेशकर , प्रकाश पादुकोण जैसे आइकॉन थे , तो इस बार नई जेनरेशन के नए आइकॉन सितार वादक अनुष्का शंकर , सरोद वादक अमान और अयान , शूटर अभिनव बिंद्रा , बॉक्सर विजेंदर सुर मिला रहे हैं।

पिछले विडियो का कॉन्सेप्ट सुरेश मलिक ने तैयार किया था और पीयूष पांडेय ने लिखा था। नए विडियो की शानदार सिनेमेटॉग्रफी और म्यूजिक है लुई बैंक्स का। पुराने विडियो में भी लुई बैंक्स ने पी . वैद्यनाथन के साथ मिलकर म्यूजिक तैयार किया था।

(हिन्दी) मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
मिले सुर मेरा तुम्हारा …

(कश्मीरी) चॉन्य् तरज़ तय म्यॉन्य् तरज़
इक-वट बनि यि सॉन्य् तरज़

(पंजाबी) तेरा सुर मिले मेरे सुर दे नाल
मिलके बणे एक नवा सुर ताल

(हिन्दी) मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

(सिन्धी) मुहिंजो सुर तुहिंजे साँ प्यारा मिले जडेंह
गीत असाँजो मधुर तरानो बणे तडेंह

(उर्दू) सुर का दरिया बह के सागर में मिले

(पंजाबी) बदलाँ दा रूप लैके बरसन हौले हौले

(तमिल) इसैन्दाल नम इरुवरिन सुरमुम नमदक्कुम
तिसै वॆरु आनालुम आऴि सेर
मुगिलाय मऴैयय पोऴिवदु पोल इसै
नम इसै…

(कन्नड) नन्न ध्वनिगॆ निन्न ध्वनिय,
सेरिदन्तॆ नम्म ध्वनिय

(तेलुगु) ना स्वरमु नी स्वरमु संगम्ममै,
मन स्वरंगा अवतरिंचे .

(मलयालम) निंडॆ स्वरमुम् नींगळुडॆ स्वरमुम्
धट्टुचॆयुम् नमुडॆय स्वरम .

(बाङ्ला) तोमार शुर मोदेर शुर
सृष्टि करूर अइको शुर

(असमिया) सृष्टि हो करून अइको तान

(उड़िया) तोमा मोरा स्वरेर मिलन
सृष्टि करे चालबोचतन

(गुजराती) मिले सुर जो थारो म्हारो
बणे आपणो सुर निरालो

(मराठी) माँझा तुमच्या जुलता तारा
मधुर सुराँचा बरसती धारा

(हिन्दी) सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
मिले सुर मेरा तुम्हारा …
तो सुर बने हमारा

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हालांकि इसे रिलीज हुए अभी कुछ हि दिन हुए है , लेकिन यंगस्टर्स में यह अभी से पॉप्युलर हो गया है। यूट्यूब में पहले ही दिन इसे 2600 से ज्यादा हिट्स मिले। इंटरनेट पर चैट रूम्स हों या डिस्कशन बोर्ड , ब्लॉग्स हों या फिर ऑरकुट या फेसबुक की कम्युनिटीज ... सब जगह यंगस्टर्स फिर मिले सुर पर बातचीत करते नजर आ रहे हैं। हालांकि कुछ को इसमें बॉलिवुड की ओवरडोज लग रही है , लेकिन ज्यादातर युवा इस बात से खुश हैं कि इसमें राज्यों को अनेकता पर महत्व न देते हुए देश को एक यूनिट की तरह दिखाया गया है। हर सिलेब्रिटी को किसी एक खास राज्य से जोड़कर दिखाने की बजाय पूरे देश की एकता पर जोर दिया गया है।

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

सबसे बड़ी मदद

एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज पर कुछ सिक्के रखते हुए कहा, 'आपने बुरे वक्त में जो सहायता की थी, मैं उसके लिए बहुत आभारी हूं। पर अब मैं अपनी मेहनत से इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका कर्ज वापस कर सकूं। मैं यह सिक्के आपको वापस करने आया हूं।' बेंजामिन फ्रैंकलिन की बात सुनकर वह सज्जन उन्हें घूरते हुए बोले, 'क्षमा करिए, पर मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे यह याद है कि मैंने किसी को उधार दिया था।' बेंजामिन ने कहा, 'मैं उन दिनों एक प्रेस में अखबार छापने का काम करता था। एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई तब मैंने आपसे बीस डॉलर लिए थे।' यह सुनकर उस व्यक्ति ने अपने बीते दिनों को याद किया तो उन्हें स्मरण हो आया कि एक बालक प्रेस में काम करता था और एक दिन उसके बीमार होने पर उन्होंने उसकी मदद की थी।

यह याद आने पर उस व्यक्ति ने कहा, 'हां, मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मनुष्य का सहज धर्म है कि वह आपत्तिग्रस्त व्यक्ति की सहायता करे। इन सिक्कों को आप अपने पास ही रखें और कभी कोई जरूरतमंद व्यक्ति आपकी नजरों में आए, तो उसे दे दीजिएगा।' इस बात से बेंजामिन बहुत प्रभावित हुए और उन्हें नमस्कार कर उन सिक्कों को वापस अपने साथ ले आए। इसके बाद उन्होंने एक जरूरतमंद युवक को वे सिक्के दिए। जब उस युवक ने सिक्के लौटने चाहे तो बेंजामिन ने कहा, 'दोस्त, जब तुम सक्षम हो जाओगे तो अपने जैसे किसी जरूरतमंद को ये सिक्के दे देना। मैं समझूंगा कि मेरे पैसे मुझे मिल गए।' वह युवक बोला, 'मैं ऐसा ही करूंगा।' इसके बाद बेंजामिन उस युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, 'किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही इंसानियत है। अगर हम किसी की मदद करते हैं तो वह मदद सौ गुना अधिक होकर हमारे पास वापस आती है और हमें कामयाब बनाती है।'

संकलन: रेनू सैनी (नवभारत टाइंम्स)