सोमवार, अगस्त 06, 2007

मित्रता दिवस - मैत्री पर्व

सभी चिट्ठाकार मित्रो को मित्रता दिवस कि हार्दिक शुभकामनाये। माफ करना चिट्ठाकार मित्रो नई नियुक्ति कि शुरुआती व्यक्ता तथा अपने को माहौल के अनुसार ढलने मे कुछ ज्यादा समय लगा । ये पोस्ट तो मेरे को कल पोस्ट करनी चाहिये थी पर समयाभाव के कारण न कर सका। तो हम बात कर रहे है मित्रता दिवस कि। आमतौर पर लोग इस तरह के दिवसो कि आलोचना करते है क्योकि उन्हे लगता है कि हमे इस तरह के दिवसो कि आवश्य्कता नही है। पर उन्हे क्या पता आजकल के भौतिकवादी, उपभोक्तावादी, मशीनी युग में वे यंत्रवत जीवन शैली में जिंदा है, पर जीने की अदा भूल चुके है। एक ठंडी आह और कसक के साथ हम सब चले जा रहे हैं, अपने कंधों पर अपने-अपने सलीब उठाए। जिस तरह से तमाम नजदिकी संबंध या खून के रिश्ते खत्म हो रहे है या ढोये जा रहे है सिर्फ दोस्ती वह रिश्ता है जिसका जज्बा आज भी वैसे ही बरकरार है। द्वंद्व और उलझनों से भरे जीवन में कुछ पल शांति और सुकून के मिलते हैं तो वह सिर्फ इस दोस्ती के दायरे में ही।

जिंदगी में खुशियों के रंग भरने वाला हसीन रिश्ता है - दोस्ती। इस प्यार भरे रिश्ते को सम्मान दिलाने के लिए अमेरिका में कुछ लोगों ने एक दिन दोस्ती के नाम करना तय किया। उनकी कोशिशें रंग लाईं और सन् 1935 में अमेरिका में अगस्त के पहले रविवार को आधिकारिक रूप से फ्रेंडशिप डे (मित्रता दिवस) घोषित किया गया। पिछले 72 सालों में फ्रेंडशिप डे ने अमेरिका की सरहदों को लाँघकर पूरे विश्व में अपना स्थान बना लिया है। जिस तरह से दोस्ती का जज्बा हर दिल, हर देश में होता है, वह किसी जाति, कुल, धर्म, संप्रदाय या प्रांत कि मोहताज नही होती है। जब दोस्ती के रिश्ते के कोई नियम, कायदे-कानून नहीं होते तो इसके सम्मान में समर्पित मित्रता दिवस (फ्रेंडशिप डे) किसी देश या समाज मे कैसे बंध सकता है। इसलिये मित्रता दिवस भी दुनिया के हर मुल्क में मनाया जाने लगा है।

जिस तरह जोडियाँ स्वर्ग में बनने की बात लोग करते हैं, शायद सच्ची दोस्ती भी स्वर्ग में ही बनती होगी। इंसान जब जन्म लेता है तब उसे स्वयं नहीं पता होता कि वह किस जाति, कुल, धर्म, संप्रदाय या प्रांत का हिस्सा बनने जा रहा है। अपने जन्म के साथ ही वह माँ की कोख से अपने साथ लाता है सिर्फ 'रिश्ते', 'खून के रिश्ते' जैसे भाई-बहन, चाचा-ताऊ-मौसा-मामा जिन्हें वह चाहे तो भी बदल नहीं सकता, बना नहीं पाता, मिटा नहीं पाता। ये रिश्ते बँधे होते हैं मर्यादाओं, परंपराओं और परिस्थितियों की जंजीरों से। बँधना कोई नहीं चाहता। हर इंसान की सहज प्रवृत्ति होती है मुक्ति की चाह, अभिव्यक्ति की इच्छा और यहीं से प्रारंभ होता है एक अच्छे साथी की खोज का शायद यही कारण है कि लाख अच्छा वातावरण और परिवेश होने के बावजूद थोड़ा-सा भी स्वविवेक जागते ही हर व्यक्ति एक 'मित्र' की आकांक्षा में एक नए और अनजाने सफर पर निकल पड़ता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई नदी अपने उद्गम स्थल से निकलते ही पूरे उफान और वेग के साथ बह पड़ती है।

दुनिया मे कई एसे संबध होते है जिन का अस्तित्व समय के साथ खत्म हो जाता है पर दोस्ती वो जज्बा है जो हमेशा तरोताजा रहता है। ईश्वर ने ऐसे खूबसूरत रिश्ते की बागडोर पूरी तरह से हमारे हाथों में सौंप दी है, जिसके साथ हमारे जीवन की सारी खुशियाँ और सारे गम जुड़े होते हैं। ईश्वर ने हमें पूरी स्वतंत्रता दी है कि हम अपने दोस्त खुद बनाएँ और यह रिश्ता जैसे चाहे, वैसे निभाएँ।

दोस्ती, स्नेह, भावना, विचारधारा या अहसास की धरती से अंकुरित नहीं होती, अपितु इसकी नींव जरूरतों की पूर्ति पर टिकी होती है। सच्ची 'मित्रता' वह तो दुनिया के सारे रिश्ते-नातों से ऊपर है। यही वजह है कि इसमें उम्र, कुल, धर्म, संप्रदाय जैसे क्षेपक कभी नहीं लग पाते। यह आस्था और विश्वास का वह अंकुर होती है जो एक बार हृदय में प्रस्फुटित हुआ तो ताउम्र जीवन को सुरभित और सुवासित करता है। इसकी महक आपके व्यक्तित्व और रूह में रच-बस जाती है, इसीलिए परोक्षतः साथ न होने पर भी आपके मित्र की मित्रता सदैव आपके साथ-साथ चलती है। ऐसा साथ परिवार में मिलना मुश्किल है। कारण भी स्पष्ट है कि पारिवारिक रिश्ते 'निरपेक्ष' नहीं रह पाते। उनके पीछे एक अलग पृष्ठभूमि होती है जो बाधक न भी हो तो भी मित्रता की कसौटी पर सध नहीं पाती, क्योंकि सबके अपने-अपने विचार और मूल्य कहीं न कहीं आड़े ही आ जाते हैं। इसीलिए हमें जरूरत होती है एक ऐसे व्यक्ति की जो पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ हमारी अनुभूतियों का साक्षी बने, जो पूरी करुणा के साथ हमारी पीड़ा व दुःख के गहनतम क्षणों को हमारे साथ-साथ भोगे, जिसका स्नेह ऐसा हो कि जब वह बरसे तो मन की धरती से मुस्कुराहटों की कोपलें फूट पड़ें और जो हमारी भूलों पर आवरण न डालते हुए हमें आईना दिखाने के बाद स्वयं बाँहें पसार उनमें समा जाने का आमंत्रण दें। एक ऐसा साथ जो पूजा की तरह पवित्र व सात्विक हो और सर्वथा निर्विकार हो। ऐसा अपनत्व जो मन की गहराइयों को छूकर हमारी धमनी और शिराओं में हमें महसूस हो और हमारी हर धड़कन के साथ स्पंदित हो... यकीनन ये सब भावना के आवेग से उपजे शब्द प्रतीत हो सकतेहैं, मगर हर उस व्यक्ति को जिसकी जिंदगी में कोई सच्चा 'मित्र' रहा हो, उसे यह अपनी ही बात लगेगी।



मित्रता का शिल्प विश्वास से बना होता है और यह विश्वास इतना कमजोर कतई नहीं होता कि छोटे-छोटे झटके उसे बिखेर दें। सही मित्रता जीवन का प्रकाश पुंज होती है, साथ न रहने पर भी उसकी यादें आपकी राहों को रोशन करती हैं। इसलिए मैत्री पर्व के सुखद अवसर पर यही कामना करता हूँ कि दुनिया के तमाम दोस्तों की हथेलियाँ जुड़ी रहें और जहाँ मित्रता का सूर्य प्रकाशवान हो, ईश्वर करे वहाँ हम भी हों।

Source : Web Dunia

4 टिप्‍पणियां:

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

मैं भी सहमत हू आपकी बातों से, कोई भी दिवस बनाने के पीछे उद्देश्य उसे विशेष रूप से सम्मान देने का है न कि ये कि साल के अन्य दिनों मे उसे उपेक्षित करने का

Sanjeet Tripathi ने कहा…

अच्छा आलेख!
आभार!
कृपया पढ़ें दोस्ती पर छत्तीसगढ़ की एक परंपरा
दोस्ती: प्रीत वही पर रीत पराई
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/08/blog-post.html

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया विचार प्रेषित किए हैं।

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छे विचार. मित्रता दिवस पर शुभकामनायें.