मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

सबसे बड़ी मदद

एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज पर कुछ सिक्के रखते हुए कहा, 'आपने बुरे वक्त में जो सहायता की थी, मैं उसके लिए बहुत आभारी हूं। पर अब मैं अपनी मेहनत से इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका कर्ज वापस कर सकूं। मैं यह सिक्के आपको वापस करने आया हूं।' बेंजामिन फ्रैंकलिन की बात सुनकर वह सज्जन उन्हें घूरते हुए बोले, 'क्षमा करिए, पर मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे यह याद है कि मैंने किसी को उधार दिया था।' बेंजामिन ने कहा, 'मैं उन दिनों एक प्रेस में अखबार छापने का काम करता था। एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई तब मैंने आपसे बीस डॉलर लिए थे।' यह सुनकर उस व्यक्ति ने अपने बीते दिनों को याद किया तो उन्हें स्मरण हो आया कि एक बालक प्रेस में काम करता था और एक दिन उसके बीमार होने पर उन्होंने उसकी मदद की थी।

यह याद आने पर उस व्यक्ति ने कहा, 'हां, मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मनुष्य का सहज धर्म है कि वह आपत्तिग्रस्त व्यक्ति की सहायता करे। इन सिक्कों को आप अपने पास ही रखें और कभी कोई जरूरतमंद व्यक्ति आपकी नजरों में आए, तो उसे दे दीजिएगा।' इस बात से बेंजामिन बहुत प्रभावित हुए और उन्हें नमस्कार कर उन सिक्कों को वापस अपने साथ ले आए। इसके बाद उन्होंने एक जरूरतमंद युवक को वे सिक्के दिए। जब उस युवक ने सिक्के लौटने चाहे तो बेंजामिन ने कहा, 'दोस्त, जब तुम सक्षम हो जाओगे तो अपने जैसे किसी जरूरतमंद को ये सिक्के दे देना। मैं समझूंगा कि मेरे पैसे मुझे मिल गए।' वह युवक बोला, 'मैं ऐसा ही करूंगा।' इसके बाद बेंजामिन उस युवक के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, 'किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही इंसानियत है। अगर हम किसी की मदद करते हैं तो वह मदद सौ गुना अधिक होकर हमारे पास वापस आती है और हमें कामयाब बनाती है।'

संकलन: रेनू सैनी (नवभारत टाइंम्स)

1 टिप्पणी:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रेरणास्‍पद लघुकथा।