रविवार, अगस्त 01, 2010

दोस्ती, खुशी का मीठा दरिया है

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज से उसके रिश्तों का ताना-बाना बड़ा ही वृहद होता है। वैसे तो उसके रिश्तों की फेहरिस्त बड़ी लंबी होती है, परंतु कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जीने का जुनून जगाते हैं, कुछ कर गुजरने की जिद बन जाते हैं क्योंकि उन रिश्तों में 'प्रेरणा' की ऊर्जा निहित होती है। ये रिश्ते उस स्पंदन की अनुभूति होते हैं, जिनका आधार ही दोस्ती की नींव है। दोस्ती कहें या मित्रता, बोलने-सुनने में भले ही सहज सा लगे परंतु इस आत्मीय रिश्ते की गहराइयाँ पग-पग पर किस तरह हमें अनुकूलता/प्रतिकूलताओं में प्रेरित करती है, हमारा सम्बल बनती है, हमें संभालती है, यह वही समझ सकता है जिसके पास एक अच्छा दोस्त है। कुछ रिश्ते तो निभाए जाते हैं मगर यह इकलौता ऐसा है, जिसे जिया जाता है। 'दोस्ती' जिंदादिली का नाम है। 'दोस्त' बनकर दर्द दूर नहीं किया तो दोस्ती क्या खाक निभाई। सुख-दु:ख में दोस्ती ठंडी हवा का झोंका बनकर गले से लिपट जाती है, जिसका स्नेहिल स्पर्श तनाव में भी सुकून देता है।

सच्चा दोस्त किस्मत वालों को ही मिलता है। आसान नहीं है दोस्त मिलना और खुद किसी का दोस्त बन जाना। क्योंकि आज हम जिन लोगों के साथ घूमते-फिरते हैं। पिक्चर देखते हैं। टाइम पास करने के लिए हँस-बोल लेते हैं। उन्हें ही दोस्त कहने और समझने भी लग जाते हैं। दोस्ती एक अनमोल रिश्ता है जिसमें आदमी कब बँध जाता है। पता ही नहीं चलता। मुश्किल समय में काम आने वाला, नेक सलाह देने वाला मित्र ही सच्चा मित्र है। सच्ची मित्रता को किसी फ्रेंडशिप डे या फ्रेंडशिप बेल्ट जैसी औपचारिकताओं की जरूरत नहीं होती। उनके लिए प्रत्येक दिन ही मित्रता दिवस होता है। यह दिन शायद उन मित्रों के लिए बना हो जोकि बहुत ही मुश्किल से साल भर में यदा-कदा ही मिल पाते हों तो कम से कम इस दिन उन्हें याद कर लें।

'दोस्ती' की सरगम पर विश्वास के सुर पैरों में अपनेपन के नुपूर बाँधकर थिरकते हैं। 'दोस्ती' के पर्वत से ही प्रेरणा के झरने बहकर सफलतारूपी सरोवर में जा मिलते हैं। 'दोस्ती' वह जुगनू है, जिसकी टिमटिमाती रोशनी प्रतिकूलताओं की निशा में उम्मीद की किरण की तरह हमेशा जगमगाती रहती है।

'दोस्ती' उस सुरभि का नाम है जिसका अहसास 'अपनत्व' का अनुभव कराता है। कोई कहे 'दोस्त' हमदर्द होता है परंतु सच्चाई तो यह है कि 'दोस्त' वह गुरूर होता है, जिसके आश्रय में हममें मुसीबतों से लड़ने का साहस जाग जाता है।

बदलते कालचक्र में भले ही दोस्ती ने नया आयाम ले लिया हो परंतु इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता है कि दोस्ती का रिश्ता आज भी उसी विश्वास, समर्पण और अगाध स्नेह का पर्याय है, जितना कि वह बीते समय में रहा है। चूँकि समय बलवान है इसलिए बदलता रहता है परंतु तमाम रिश्तों में एक सच्चे दोस्त की 'दोस्ती' का रिश्ता समय की धारा के साथ परिवर्तित नहीं बल्कि प्रगाढ़ होता है।

वॉशिंगटन अर्विंग ने कहा है - सच्ची दोस्ती कभी व्यर्थ नहीं जाती, यदि उसे प्रतिदान नहीं मिलता तो वह लौट आती है और दिल को कोमल और पवित्र बनाती है।

तो बोलिए... क्या आप बन सकते हैं, ऐसे दोस्त। यदि 'हाँ' तो आज ही के दिन से इसकी शुरुआत कीजिए...।

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